कल रात मैंने एक स्वप्न देखा
एक हुई पृथ्वी-स्वर्ग की रेखा ।
जब प्रभु ने अपने दर्शन दिए
मेरे मार्गदर्शन के लिए ।।" हे प्रभु ऐसी अब स्तिथि हो आयी
हमारी ही पृथ्वी हमे रुलाई
इसलिए मैंने मदद की पुकार लगाई "
यह सुन प्रभु ने दासतांँ सुनाई ।हे मनुष्य तूने क्या कर डाला
हर तरफ है कूड़ा भर डाला ।
जब खुद ही प्रकृति को चोट पहुंचाई
तो मुझे पुकार क्यों लगाई ?तूने ही सब बिगाड़ा है
तुझे ही सब सुधारना है ।
बचा ले खुद इस पृथ्वी को
वरना अंत बहुत डरावना है ।।क्यों आज तू अब रोता है
जब भूमि में कंपन होता है ।
खुद ए.सी. में जब सोता है
तब तप अपना धैर्य खोता है ।।इस तप से सब बर्फ पिघल गए
श्वेत भालू के प्राण निकल गए ।
तेरी ही लापरवाही से सब
जानवर प्लास्टिक निगल गए ।।जंगलों का तूने नाश किया
उस हथिनी ने तुझ पर विश्वास किया ।
बदले में तूने उसे खाने को
जानलेवा ज़हरीला अनानास दिया ।।कुछ जीव हैं मनुष्य के खाने में
कुछ चमड़े के लिए पड़े तयखाने मे ।
बीतते समय मे कैसी तेरी इच्छायें बढ़ी
उन बेज़ुबानों को जान गवानी पड़ी ।।जितना नदी में गंदगी मचाएगा
उतना शीघ्र काल समीप आएगा ।
तड़पेगा स्वछ पानी के लिए
गला सूखते ही मर जायेग ।।देखेगा अभी प्रकृति का प्रचंड रूप
नही होगी वर्षा न ही धूप ।
कोरोना तो सिर्फ दस्तक है
आएंगे और बनके काल का रूप ।।तूने ही अपना ये हाल बनाया है
बहुत कुछ त्रासदी में गँवाया है ।
रक्षक है तू इस पृथ्वी का
पर रचयिता खुद को मान आया है ।।तूने ही सब बिगाड़ा है
तुझे ही सब सुधारना है ।
बचा ले खुद इस पृथ्वी को
वरना अंत बहुत डरावना है ।।By- Ankit Jaiswal
================================
YOU ARE READING
From Pen To Paper
PoetryFeeling : a word with tons of emotion... Just poured those feelings from heart to paper through ink of pen.... In this you will find all types of poems and I hope you will enjoy it.... So what are you waiting for... Just have a bucket of popcorn and...