सोच

29 7 10
                                    

इस सोच को मिलकर मिटाना है,
इस देश की सोच में एक बदलाव लाना है,
छूत-अछूत को जड़ से मिटाना है,
सबको एक जैसे दर्जे पर लाना है,
ऊँच-नीच की दीवार को मिटाना है,
भारत को फिरसे भारत माता बनाना है,
काम बड़ा है पर पूरा कर के दिखाना है,
इस सोच को मिलकर मिटाना है!

यारो एक बात तो बताओ,
ये छूत-अछूत की प्रथा कहाँ से लाये हो ये तो बताओ!
मानता हूँ नहीं चलता है अब ये सब,
फिर भी क्यों किसी सफाई करने वाले को छूने से कतराते हो ?
क्यों बच्चों को भी उनसे दूर रहना सिखाते हो?
क्यों अभी भी उनको मंदिर, मस्जिद, चर्च में नहीं आने देते हो?
क्यों नहीं उनको भी अपने जैसा ही मानते हो?

वैसे तो बापू की बड़ी-बड़ी बातें करते जाते हो,
फिर क्यों उनकी हरिजन वाली बात को भुल‌ जाते हो?
अरे रब के बंदे हैं वो उनकी थोड़ी इज़्ज़त करो,
उनके बिना चैन से जीने के लिए जगह भी नहीं मिलेगी तुमको!

किसकी ऊंची जात किसकी नीची क्या फर्क पड़ता है?
आखिर में मरना तो एक दिन सभी को पड़ता है!
चलो ऊंची जात में होकर भी क्या पाओगे?
जैसा काम करोगे वैसा ही परिणाम पाओगे!
अगर इतनी ही नफरत है तो क्यों उनसे काम करवाते हो?
खुद ही बनाकर क्यों नहीं खाते हो?

ऐसे ही लोग एक दिन बड़े-बड़े काम करके दिखाते हैं!
आगे जाकर वही लोग डॉ। अम्बेडकर जैसे बन जाते हैं!
कार्य बड़ा है पर मिलकर इसे कर के दिखाना है,
इस सोच को मिलकर मिटाना है

Need of the hourजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें