चैप्टर ५

45 4 0
                                    

माया, दीप्ती से उस बारे में कुछ नहीं कहती है जो भी अभी तक उसने देखा था। वो उस किताब को, दीप्ती से छिपाकर, अपने बैग में वापस रख देती है। उतने में दीप्ती का फोन बजने लगता है। दीप्ती फोन उठाती है और उस पर थोड़ी देर बात करके, उसे रख देती है। दीप्ती माया से फिर मुड़कर कहती है।

दीप्ती- ओए माया, तू चलेगी क्या?

माया को दीप्ती की बात कुछ खास समझ नहीं आती है।

माया- चलेगी? कहां ले जा रही है मुझे?

दीप्ती- अरे तू पहले हां या ना बोल, फिर बताऊंगी जब तू हां बोलेगी तो।

माया- यार ये क्या ही अजीब जबर्दस्ती है? अच्छा चल चलूंगी पर कहां?

दीप्ती- खज्जियार।

माया- हैं? ये कहां है?

दीप्ती- बस यहीं से २५ कि.मी. दूर और वहां आने वाले दिनों में भी काफी कम बर्फ गिरेगी।

माया- वहां क्या करने जा रहें हैं अब?

दीप्ती- ओफ्फो डंबो, घूमने जा रहें हैं। फाइन आर्ट्स वालों को पहली बार मौका मिला है ऐसे साथ घूमने का।

माया और दीप्ती, ये बात कर ही रहे होते हैं कि तभी दीप्ती का फोन फिर बजता है। दीप्ती जो भी उस फोन पर होता है उसको सब बताती है कि माया मान गई है। फोन काटने के बाद माया दीप्ती से पुंचती है कि कौन-कौन चल रहा है?

दीप्ती- अरे यार ज़्यादा लोग नही बस मैं, तू, उत्कर्ष, अनामिका, दक्ष, दर्शित, दित्या, दंश, नकुल, तरुण, तुषार, विशाल और श्रद्धा।

दीप्ती फिर एक लंबी गहरी सांस लेती है।

माया- सबका नाम तो तूने ले लिया। विक्रांत नहीं चल रहा क्या?

दीप्ती- अरे यार, उससे पूंछा था पर उसे उसकी शॉप में कुछ काम था। उसके अलावा भी कुछ फैमिली इश्यूज हैं तो उसने आने से मना कर दिया।

माया- ओह अच्छा। यार वो भी चलता साथ में तो ठीक रहता। अच्छा वैसे, ये दंश क्यों चल रहा है हमारे साथ में?

दीप्ती- घूमते टाइम दक्ष और दर्शित को लाइन में रखने के लिए।

माया- सही है। वैसे भी दोनों को वही कंट्रोल कर सकता है। निकलना कब है?

डलहौजी डार्कनेसजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें