चैप्टर ६

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माया की खज्जियार की ट्रिप वैसी बिल्कुल नही गई थी जैसी उसने सोची थी। उसे एक चीज़, जो उसने अपने सपने में देखी थी, बहुत परेशान कर रही थी। माया ने अपने सपने में एक पेड़ को देखा था। वो एक बड़ा, काला, बहुत ही अजीब सा दिखने वाला पेड़ था। माया को लग रहा था कि असल जिंदगी में भी उसने वो पेड़ पहले भी कहीं तो देखा था। मगर उसे याद नही आ रहा था कि कहां?

माया को करीब १२ घंटे हो गए थे ट्रिप से आए हुए। लेकिन आते के साथ ही उसके दिमाग के घोड़े सारी अजीब चीजों के बारे में ही सोच रहे थे। माया की सारी चीजों के बारे में जानने की इच्छा काफ़ी बढ़ गई थी। उसे सब चीजें तंग करने लगी थी। विक्रांत का वो अजीब बिहेवियर, दंश का खून को देख कर भाग जाना, दंश के भाइयों की आंखों का रंग गुस्से में अचानक बदल जाना और अनामिका की चोट का अपने आप ठीक होना। माया सोच ही रही थी कि तभी उसके कमरे में दीप्ती आ जाती है।

दीप्ती माया को सोच में पड़ा देखती है। माया को देखकर ऐसा लग रहा था कि उसने ट्रिप से आकर बिलकुल भी आराम नही किया था। माया की शक्ल पर चिंता साफ़ दिख रही थी। दीप्ती ये देखकर खुद भी सोच में पड़ जाती है।

दीप्ती- ओय?

माया अचानक से दीप्ती की आवाज सुनकर थोड़ा चौक जाती है।

माया- अरे यार! डरा दिया।

दीप्ती- अबे मैंने कहां डरा दिया तुझे? पता नही खुद कहां खोई हुई है? क्या हो गया? किस चीज से परेशान है बहन?

माया, दीप्ती की बात सुनकर थोड़ा सोच में पड़ जाती है। वो दीप्ती को डायरेक्टली कुछ न बताते हुए उससे बोलती है।

माया- यार पता नही। एक अजीब सा सपना देखा था तो उसी को लेकर परेशान हूं।

दीप्ती- अरे? ऐसा क्या देख लिया तूने जिसको लेकर इतनी परेशान है तू?

माया- एक पेड़ देखा। वो ऐसा पेड़ था जिसे मैंने पहले भी देखा है पर वैसा नही जैसा सपने में देखा था। उसका काले रंग का एक बहुत बड़ा और मोटा तना था और उस पर तीन तरह की पत्तियां एक साथ लगी हुईं थीं।

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