मोहब्बत वही की तरह

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मोहब्बत वही की तरह उतरी थी कभी हम पर
सरापा बाकमाल ईश्क चढ़ा था हम पर ।

नहीं देखा कि तू था रास्ते में हमें ढुंढता
अजब था खुमार बेखुदी का हम पर ।

तेरे वजूद से वाबस्ता ज़िन्दगी हमारी
थे अनजान न जाने कैसा नशा था हम पर ।

न चाहा तुझको तेरी चाह में भी
चढ़ा चाहत का ये रंग भी कमाल हम पर ।

कभी रु-ए-बदन पे नमूदार हुआ ना दाग़ बन कर
वोही सियाह रंग रुहानी चढ़ा था हम पर ।

शायरी की महफिल से निकाल फेंका, ईश्क़जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें