मोहब्बत वही की तरह उतरी थी कभी हम पर
सरापा बाकमाल ईश्क चढ़ा था हम पर ।नहीं देखा कि तू था रास्ते में हमें ढुंढता
अजब था खुमार बेखुदी का हम पर ।तेरे वजूद से वाबस्ता ज़िन्दगी हमारी
थे अनजान न जाने कैसा नशा था हम पर ।न चाहा तुझको तेरी चाह में भी
चढ़ा चाहत का ये रंग भी कमाल हम पर ।कभी रु-ए-बदन पे नमूदार हुआ ना दाग़ बन कर
वोही सियाह रंग रुहानी चढ़ा था हम पर ।