भाग 6: अफेयर का खुलासा

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रात घिर आई थी, और घर की खामोशी में एक अलग सा तनाव था। समीर ने सुहासिनी के सामने फोन रखते हुए एक शब्द नहीं कहा था, लेकिन उसकी आँखों में दर्द और गुस्सा स्पष्ट थे। सुहासिनी की सांसें तेज हो गईं। सच अब पूरी तरह सामने आ चुका था। उसने समीर के चेहरे पर एक अजीब सी शून्यता देखी—जैसे वह इस पल के लिए तैयार तो था, पर इसका सामना करने से डर रहा था।

"ये सब क्या है, सुहासिनी?" समीर की आवाज़ भारी और रुंधी हुई थी। "मैंने हमेशा तुम पर भरोसा किया... पर ये? आर्यन कौन है? और तुमने ये सब मुझसे कैसे छुपाया?"

सुहासिनी के पास कोई जवाब नहीं था। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वह खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी। उसने कई बार सोचा था कि यह बात कब और कैसे सामने आएगी, लेकिन अब जब सच सामने था, तो उसे महसूस हो रहा था कि वह कभी इसके लिए तैयार ही नहीं थी।

"समीर..." उसने धीमे से कहा, लेकिन उसके शब्द अधूरे रह गए। वह क्या कह सकती थी? क्या कोई भी शब्द उस विश्वासघात को मिटा सकते थे जो उसने किया था?

समीर उठ खड़ा हुआ और कमरे में तेज कदमों से चलने लगा। "तुमने मुझे क्यों नहीं बताया? हम इतने साल साथ रहे, हमारी ज़िंदगी अच्छी चल रही थी... कम से कम मैंने तो यही सोचा था। क्या तुम्हें मुझसे कुछ भी नहीं कहना था?" उसकी आवाज़ में गुस्सा और टूटन दोनों मिलकर एक अजीब सी गूंज पैदा कर रहे थे।

सुहासिनी ने हिम्मत जुटाकर कहा, "मैं खुद नहीं जानती थी कि ये सब इस तरह से हो जाएगा। मैं तुमसे कभी दूर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन... मैं खुद को रोक नहीं पाई।" उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसने समीर की ओर देखा, लेकिन उसकी आँखों में कोई सुकून नहीं मिला।

समीर ने एक गहरी सांस ली। "कितना वक्त हो गया है तुम्हारा और आर्यन का ये... ये सब?"

सुहासिनी ने अपने आँसू पोंछते हुए जवाब दिया, "कुछ महीनों से..."

समीर ने उसकी बात सुनते ही अपना सिर झुका लिया। उसकी आँखों में दर्द और निराशा का सागर था। "और मैं... मैं यहाँ अंधेरे में बैठा रहा, ये सोचकर कि सब कुछ ठीक है। मुझे लगा था कि हम खुश हैं।"

सुहासिनी जानती थी कि समीर के लिए यह पल कितना भारी था। उसने उसे धोखा दिया था, और अब यह सच न केवल उनके रिश्ते को तोड़ रहा था, बल्कि समीर के आत्म-सम्मान को भी बुरी तरह से झकझोर रहा था।

उधर, आर्यन भी इस खुलासे के असर से अछूता नहीं रहा। सुहासिनी ने उसे कॉल कर बताया कि समीर को सब पता चल गया है। फोन के दूसरी तरफ की खामोशी ने सब कुछ कह दिया।

आर्यन ने धीरे से कहा, "मैंने पहले ही सोचा था कि ये दिन आएगा। अब क्या करेगी, सुहासिनी?"

सुहासिनी की आवाज़ कांप गई, "मैं नहीं जानती, आर्यन। समीर टूट चुका है। मैंने उसे धोखा दिया है।"

आर्यन की आवाज़ भी गंभीर थी। "मैं तुम्हारे साथ हूँ, लेकिन तुम जो भी फैसला करोगी, उसके लिए तैयार रहना होगा।"

सुहासिनी के सामने अब केवल दो रास्ते थे—एक, जहाँ वह समीर के साथ अपने रिश्ते को बचाने की कोशिश करती, और दूसरा, जहाँ वह आर्यन के साथ एक नई शुरुआत की ओर बढ़ती। लेकिन दोनों ही रास्तों पर कोई आसान जवाब नहीं था।

रात गहराते ही समीर ने सुहासिनी से आखिरी सवाल पूछा, "क्या तुम उससे प्यार करती हो?"

सुहासिनी ने अपनी आँसुओं से भरी आँखों में झाँकते हुए जवाब दिया, "शायद... हाँ। लेकिन मैं तुम्हें भी प्यार करती हूँ, समीर। बस... मैं कहीं खो गई थी।"

समीर की आँखों में अब सिर्फ निराशा थी। "प्यार? ये प्यार है? तुमने हमारे रिश्ते को, हमारे परिवार को, हमारे बच्चों को एक झूठ में जीने दिया। क्या यह वही प्यार है जो तुम मुझे दे रही थी?"

सुहासिनी के पास कोई जवाब नहीं था। उसने सब खो दिया था—समीर का भरोसा, उसका अपना आत्म-सम्मान, और शायद वह रिश्ता भी जिसे बचाने की उम्मीद अब धुंधली हो चुकी थी।

समीर ने चुपचाप अपने कमरे की तरफ कदम बढ़ाए। "मुझे कुछ वक्त चाहिए, सुहासिनी। मैं इस सब से उबरने के लिए तैयार नहीं हूँ।"

सुहासिनी वहीं खड़ी रह गई, अकेली, अपने आँसुओं में डूबी। आर्यन के साथ उसका रिश्ता अब भी खड़ा था, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि इस रिश्ते ने उसके जीवन में क्या लाया और क्या छीना।

यह खुलासा उसके रिश्तों की नींव हिला चुका था। अब उसे अपने फैसले का सामना करना था, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो।

क्रमश:

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