भाग 3: कशमकश

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सुहासिनी की ज़िंदगी में अब एक अजीब सा बदलाव आने लगा था। आर्यन से मिलने के बाद उसका दिल नए जोश से भर उठा था, लेकिन यह एहसास उसे जितना सुकून दे रहा था, उतनी ही बेचैनी भी। हर बार जब वह आर्यन से मिलती या उसकी यादों में खो जाती, एक गहरा अपराधबोध उसे घेरने लगता। वह एक पत्नी थी, माँ थी, और उसे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास था। लेकिन आर्यन के साथ बिताए हर पल ने उसे उस खालीपन से भरा, जिसे समीर के साथ के बावजूद वह महसूस कर रही थी।

समीर, अब भी अपने काम में व्यस्त, सुहासिनी के जीवन में हो रहे इस बदलाव को पूरी तरह से नहीं देख पा रहा था। हालाँकि, उसने हाल ही में सुहासिनी के व्यवहार में कुछ बदलाव ज़रूर नोटिस किया था। वह अक्सर अपने ख्यालों में खोई रहती, कभी-कभी रातों में जागती रहती और अब घर की छोटी-छोटी बातें भी उतने उत्साह से नहीं करती थी। समीर ने एक दिन हंसते हुए उससे कहा, "तुम्हें क्या हो गया है, आजकल बहुत खोई-खोई रहती हो। सब ठीक है ना?"

सुहासिनी ने जबरन मुस्कराते हुए जवाब दिया, "हाँ, सब ठीक है। बस थोड़ा थक जाती हूँ कभी-कभी।"

लेकिन समीर के इस सवाल ने उसके दिल में हलचल मचा दी। क्या वह वाकई ठीक थी? उसने खुद से पूछा। आर्यन के साथ बिताए कुछ ही पल उसकी ज़िंदगी को बदलने लगे थे। वह एक तरफ समीर और अपने बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से बंधी हुई थी, और दूसरी ओर आर्यन के प्रति अपने नए और रोमांचक आकर्षण से खिंचती जा रही थी।

एक दिन, जब वह अपने कमरे में अकेली बैठी थी, उसने अपने भीतर चल रही इस कशमकश पर विचार किया। "क्या मैं गलत कर रही हूँ?" उसने खुद से पूछा। आर्यन से मिलना और उससे बातें करना उसे अच्छा लगता था, लेकिन क्या यह ठीक था? वह एक शादीशुदा औरत थी, उसकी अपनी जिम्मेदारियाँ थीं। समीर के साथ उसने सालों से एक घर बसाया था, और उनके दो बच्चे थे, जिनके भविष्य की चिंता हमेशा उसके मन में रहती थी।

पर आर्यन के साथ जो सुकून और खुशी उसे मिलती थी, वह उसे समीर के साथ अब महसूस नहीं होती थी। आर्यन के साथ बिताया हर पल उसे फिर से जिंदा महसूस कराता था—जैसे वह अब भी किसी की चाहत थी, किसी के लिए मायने रखती थी। लेकिन हर बार जब वह आर्यन के साथ होती, उसके दिल में अपराधबोध की एक परत और चढ़ जाती।

आर्यन भी इस बात को महसूस करने लगा था। एक दिन, जब वे एक कैफे में बैठे थे, आर्यन ने सुहासिनी से पूछा, "तुम्हें क्या लगता है, जो हम कर रहे हैं, वो सही है?"

सुहासिनी ने झिझकते हुए कहा, "मैं नहीं जानती। शायद नहीं... पर फिर भी, मैं खुद को रोक नहीं पाती।"

आर्यन ने उसकी आँखों में गहराई से देखा। "मैं तुम्हें समझता हूँ। हम दोनों की जिंदगी शायद वैसी नहीं है जैसी हमने सोची थी, लेकिन यह भी सही नहीं लगता कि हम किसी और के रिश्ते को चोट पहुँचाएं।"

सुहासिनी की आँखों में आँसू आ गए। वह इस उलझन से निकलना चाहती थी, लेकिन उसका दिल उसे आर्यन की ओर खींचे जा रहा था। वह समीर से प्यार करती थी, पर शायद उस प्यार की गहराई अब वही नहीं रही थी। उसका मन अब आर्यन के साथ वह सुकून और खुशी तलाश रहा था, जो उसे समीर के साथ कभी महसूस नहीं हुआ।

समीर, जो पहले से ही सुहासिनी के बदले व्यवहार को नोटिस कर रहा था, अब और भी चौकस हो गया था। एक रात, जब सुहासिनी देर से घर आई, समीर ने उससे सवाल किया, "तुम कहाँ थी?"

"रिया के साथ थी," सुहासिनी ने जल्दी से जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में छुपी झिझक साफ झलक रही थी।

समीर ने कोई बात नहीं बढ़ाई, लेकिन उसकी आँखों में अब शक का साया साफ दिख रहा था। वह महसूस कर रहा था कि कुछ बदल रहा है, लेकिन वह अभी तक सच को समझ नहीं पाया था।

रात को जब सुहासिनी बिस्तर पर लेटी, उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। वह अपने वैवाहिक जीवन और आर्यन के साथ के बीच बुरी तरह फंसी हुई थी। एक तरफ उसकी नैतिकता और जिम्मेदारियाँ थीं, तो दूसरी ओर उसका दिल था, जो अब कुछ और चाहता था।

कशमकश में डूबी सुहासिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह किस राह पर जाए। उसके सामने दो रास्ते थे—एक, जहाँ वह अपनी जिम्मेदारियों और परिवार के साथ रहती, और दूसरा, जहाँ वह अपने दिल की आवाज़ सुनती और आर्यन के साथ एक नई शुरुआत करती। लेकिन क्या वह इस नई शुरुआत की कीमत चुकाने को तैयार थी?

क्रमश:

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