भाग 9: भरोसे की पुनर्स्थापना

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काउंसलिंग से लौटने के बाद समीर और सुहासिनी के बीच का माहौल कुछ बदल सा गया था। पहले जहाँ खामोशी और टकराव उनके बीच दीवार बने हुए थे, अब वहाँ हल्की बातचीत और समझदारी की एक नयी किरण दिखाई देने लगी थी। लेकिन फिर भी, उन दोनों के दिलों में कई सवाल थे—कुछ कहे गए, कुछ अनकहे।

सुहासिनी ने अपने अंदर गहराई से झाँका और महसूस किया कि उसे केवल माफी माँगने से ज्यादा करना होगा। उसे समीर के खोए हुए भरोसे को फिर से जीतने के लिए अपने हर कदम पर सच्चाई और ईमानदारी का प्रदर्शन करना होगा।

रात के खाने के बाद, जब बच्चे अपने कमरे में थे, समीर और सुहासिनी दोनों बगीचे में बैठे थे। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और बगीचे की शांति में सिर्फ उनके बीच की खामोशी गूँज रही थी। सुहासिनी ने समीर की ओर देखा। वह चुपचाप आसमान की ओर देख रहा था, जैसे कुछ सोच रहा हो।

“समीर,” सुहासिनी ने धीरे से कहा, “क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो?”

समीर ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में गहरी उलझन थी। "मैं समझ नहीं पाता हूँ, सुहासिनी। मुझे दिख रहा है कि तुम सच में बदलाव लाने की कोशिश कर रही हो, लेकिन... कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं खुद को तुम्हारे ऊपर से उठे हुए शक और दर्द से कैसे बाहर निकालूं।"

सुहासिनी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने समीर के चेहरे पर गहराई से उभर रहे तनाव को महसूस किया। यह केवल उसका दर्द नहीं था, यह वह संघर्ष था जिसे समीर अकेले सह रहा था।

"मैं जानती हूँ कि मैंने तुम्हें बहुत चोट पहुँचाई है, और शायद यह भरोसा फिर से कायम करना आसान नहीं है," सुहासिनी ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा। "लेकिन मैं हर दिन कोशिश कर रही हूँ कि तुम्हें यकीन दिला सकूं कि मैं अब भी वही हूँ जो तुमसे पहले प्यार करती थी।"

समीर कुछ पल चुप रहा, फिर धीरे से बोला, "यह आसान नहीं है, सुहासिनी। मैं तुम्हारी कोशिशें देख रहा हूँ, पर कभी-कभी मुझे लगता है कि कहीं ये सब दिखावा तो नहीं।"

यह सुनकर सुहासिनी के दिल में एक अजीब सा डर पैदा हो गया, लेकिन उसने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा। वह समझती थी कि समीर का यह शक जायज़ था। उसे इसे दूर करने के लिए और भी प्रयास करने होंगे।

"मैं समझती हूँ, समीर," उसने कहा, "और मैं दिखावे के लिए कुछ नहीं कर रही। मैं यह सिर्फ तुम्हारे लिए कर रही हूँ, ताकि हम एक बार फिर से उस मुकाम पर पहुँच सकें जहाँ हमारा रिश्ता पहले हुआ करता था। मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे फिर से अपने दिल में वही जगह दो, जो कभी मेरी थी।"

समीर ने उसकी बात ध्यान से सुनी। कुछ पल के लिए उसने अपना सिर झुका लिया, जैसे अपने विचारों से जूझ रहा हो। फिर उसने सुहासिनी की ओर देखा और कहा, "शायद मुझमें अभी भी माफ करने की पूरी हिम्मत नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारी कोशिशों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। मुझे समय चाहिए, और शायद तुम्हें भी।"

सुहासिनी ने हल्की सी मुस्कान दी, एक ऐसी मुस्कान जो उसकी माफी और प्रतिबद्धता दोनों का प्रतीक थी। "समीर, हमें समय लेना चाहिए। हम इसे जल्दबाजी में सही नहीं कर सकते। मैं सिर्फ यही चाहती हूँ कि तुम मुझे इस रिश्ते को फिर से बनाने का एक मौका दो।"

समीर ने गहरी साँस ली और उसके हाथ पर अपना हाथ रखा। "मैं कोशिश करूँगा, सुहासिनी। भरोसा एक बार टूट जाता है, तो उसे फिर से बनाना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूँ।"

इसके बाद, दोनों ने एक नई प्रतिबद्धता के साथ अपने रिश्ते को फिर से बनाने की कोशिश शुरू की। सुहासिनी अब समीर के हर भाव और हर छोटे-बड़े संकेत को समझने की कोशिश करती थी। वह हर छोटी बात पर ध्यान देती थी ताकि समीर को यह महसूस हो सके कि वह वास्तव में उनके रिश्ते को बचाने की कोशिश कर रही है।

समीर भी धीरे-धीरे उसे माफ करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ रहा था। हालांकि, उसकी आँखों में अभी भी कभी-कभी अतीत का दर्द झलकता था, लेकिन सुहासिनी के सच्चे प्रयासों ने उस दर्द को धीरे-धीरे हल्का कर दिया था।

यहां तक कि उनके बच्चे भी अब महसूस करने लगे थे कि घर का माहौल बदल रहा है। बच्चों के साथ बिताया गया समय भी दोनों के बीच की दरार को भरने का एक जरिया बन रहा था। वे एक परिवार के रूप में फिर से करीब आ रहे थे।

समीर और सुहासिनी दोनों के बीच का भरोसा अब धीरे-धीरे पुनर्स्थापित हो रहा था। यह एक लंबी प्रक्रिया थी, लेकिन अब दोनों ही उस रास्ते पर थे, जहाँ वे एक दूसरे को फिर से समझने और भरोसा करने का मौका दे रहे थे।

क्रमश:

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