भाग 4: पहली दरार

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उस शाम बारिश हो रही थी। सुहासिनी घर के बरामदे में खड़ी थी, ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसके भीतर एक अलग ही तूफान चल रहा था। आर्यन के साथ उसकी मुलाकातें अब पहले से ज्यादा नियमित हो गई थीं। उनकी बातों में अब वो हिचकिचाहट नहीं रही थी, लेकिन कुछ ऐसा था जो अनकहा रह गया था, एक सीमा जिसे अब तक दोनों ने पार नहीं किया था।

उस दिन आर्यन ने सुहासिनी को अपने स्टूडियो में बुलाया था। बारिश के कारण बाहर के कैफे में जाना संभव नहीं था, और उन्होंने सोचा कि स्टूडियो में समय बिताना बेहतर रहेगा। सुहासिनी ने खुद को यह समझाया कि यह सिर्फ एक सामान्य मुलाकात है, लेकिन भीतर ही भीतर वह जानती थी कि कुछ ऐसा होने वाला था जिसे वह खुद भी नहीं रोक पाएगी।

जब वह स्टूडियो पहुंची, आर्यन उसे देखकर मुस्कराया। "तुम्हें बारिश पसंद है, है ना?" उसने कहा, खिड़की से बहती बूंदों को देखते हुए।

"हाँ, बहुत," सुहासिनी ने धीमे से जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में कुछ घबराहट थी। वह कमरे के भीतर की गर्माहट और आर्यन की मौजूदगी से अजीब सा महसूस कर रही थी। उनके बीच की खामोशी अब भारी लगने लगी थी।

आर्यन ने सुहासिनी के लिए एक कप चाय बनाई। वे दोनों चाय के घूंट लेते हुए बातें कर रहे थे, लेकिन उन बातों में अब एक अलग ही गहराई आ गई थी। हर शब्द के पीछे एक अनकही चाहत छुपी हुई थी।

थोड़ी देर बाद, आर्यन ने सुहासिनी के चेहरे की ओर देखा। "तुम खुश नहीं हो, सुहासिनी। तुम्हारी आँखें कुछ और कहती हैं," उसने नरम आवाज़ में कहा।

सुहासिनी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में आँसू थे। "मैं खुद नहीं जानती कि मैं क्या चाहती हूँ। मैं उलझ गई हूँ, आर्यन," उसने टूटे हुए स्वर में कहा।

आर्यन ने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया, उसकी आँखों में गहरी समझ थी। "तुम्हें जो महसूस होता है, वो गलत नहीं है। हम इंसान हैं, और हमें महसूस करने का हक है।"

उसके ये शब्द जैसे सुहासिनी के दिल में किसी गहरे घाव पर मरहम की तरह लगे। उसके भीतर की सारी भावनाएं बाहर आने लगीं—वह खालीपन, वह अकेलापन, और वह तड़प जो उसे समीर के साथ नहीं मिल पाई थी। और फिर, जैसे समय ने खुद को रोक लिया हो, दोनों के बीच वह दरार टूट गई जो अब तक उन्हें शारीरिक रूप से दूर रखे हुए थी।

आर्यन ने धीरे से सुहासिनी को अपने करीब खींच लिया, और वह भी खुद को रोक नहीं पाई। दोनों के बीच एक ऐसा क्षण आया, जब उनके बीच का भावनात्मक संबंध शारीरिक रूप से भी प्रकट होने लगा। उनकी साँसें एक-दूसरे में घुलने लगीं, और वह दूरी जो अब तक बनी हुई थी, समाप्त हो गई।

उस रात, स्टूडियो में बारिश की बूंदों के बीच, सुहासिनी और आर्यन के रिश्ते ने एक नया मोड़ ले लिया। लेकिन जैसे ही सब खत्म हुआ, सुहासिनी के दिल में एक भयंकर अपराधबोध की लहर उठने लगी। वह खुद को आईने में देख रही थी, लेकिन उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। उसने अपने उसूलों को तोड़ दिया था, वह सीमा पार कर चुकी थी जिसे वह कभी पार नहीं करना चाहती थी।

आर्यन ने उसके चेहरे की ओर देखा, उसकी आँखों में प्यार था, लेकिन सुहासिनी के दिल में अब केवल सवाल थे। "यह क्या कर दिया मैंने?" उसने खुद से पूछा। वह जानती थी कि समीर से यह सब छुपाकर वह अपने रिश्ते को धोखा दे रही थी, लेकिन वह अपने दिल को भी यह समझा नहीं पा रही थी कि जो उसने महसूस किया, वह क्यों इतना सच्चा था।

वह खुद को रोक नहीं पा रही थी। अपने भीतर के इस कशमकश से जूझते हुए उसने अपने फैसले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। क्या वह आर्यन से सच में प्यार करती थी, या यह केवल उस खालीपन को भरने की एक कोशिश थी, जो उसके वैवाहिक जीवन में मौजूद था? क्या यह सब केवल एक अस्थायी आकर्षण था, या फिर उसने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी थी?

आर्यन ने उसे अपने पास खींचा और कहा, "तुम्हें जो महसूस हो रहा है, वह सही है। खुद को दोष मत दो।"

लेकिन सुहासिनी जानती थी कि अब वह उस मोड़ पर थी जहाँ से वापस लौटना मुश्किल था। उसने अपने जीवन की दिशा बदल दी थी, और इस बदलाव के परिणामस्वरूप वह अपने आपको और अपने फैसलों को हर रोज़ कसौटी पर तौलेगी।

रात खत्म होने के बाद, जब सुहासिनी घर लौटी, उसने समीर को सोते हुए देखा। उसका दिल दर्द से भर गया। वह उसके पास लेट गई, लेकिन उस दिन के बाद से वह जान गई थी कि उसके जीवन में पहली दरार आ चुकी है—वह दरार जो उसकी आत्मा को तोड़ रही थी।

क्रमश:

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