पहली मुलाकात

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जब मैं पहली बार तुमसे मिली थी,
मैंने सिर्फ तुम्हारी चमकती आंखें देखी थी,
मानो जैसे पूरे आसमान के
चांद तारे उतर आए थे तुम्हारी आंखों में।
उस दिन मैंने पढ़ लिया था,
तुम्हारे भीतर का मन,
ज़िद, मासूमियत,गुस्सा, बेचैनी, बचपना, फिक्र, प्यार सब।
और कांच से भी नाजुक दिल,
हां, ठीक ही हुआ मैंने देख लिया था,
उस दिन तुम्हारी आंखों में,
पढ़ लिया था सब जो तुम लिख कर लाए थे उनमें...
मैने सोचा था तुम ढेर सारे प्रशन, शर्ते लेकर आओगे,
पर तुम उस दिन किसी सरल शब्दों में लिखी किताब की तरह आए।
ये सुकून जो न जाने कितने सालों से मैं सारे जहान में ढूंढ रही थी,
वो तुम्हारी एक मुस्कान में सिमट कर रह गई थी।
तुम बस बोलते रहे, मैं सुनती रही
हालाकि मुझे और सुनना था,
मैंने थोड़े से वक्त में  इतना कुछ पढ़, समझ लिया था।
वो थोड़ा सा वक्त काफी था,
मेरा अपना मन हार कर, तुम्हे जीतने को।
मैंने उस दिन उम्मीद, प्यार, वफादारी और अपनी ख्वाहिशों की एक पोटली बांध कर तुम्हारी दाहिने जेब में रख दिया था,
कि मुझे कितनी सारी उम्र तुम्हारे साथ जीना है,
और क्या कुछ जीना है।
हां, मैं अब भी सीख रही हूं,
पर तुम मेरे पसंदीदा इंसान हो।
मैं तुमसे हर बात जाहिर कर लेने का हुनर सीख गई हू,
और तुम मेरी खामोशी समझ जाते हो,
और तुम गुस्सा भी करते हो मुझपर कभी कभी,
पर मैं तुमसे उस बरगद के पेड़ की तरह प्यार करती हूं,
जिसकी जड़ें उसकी शाखाओं से ज्यादा गहरी है, मजबूत है।
इतना मज़बूत की तुम्हारी तरफ आता हर दुख,
उससे टकरा कर धूल हो जाए।।

~Jaan_writes

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