मेरा वक्त

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पहले लिख कर मिटा दिया करती थी,
फिर फाउंटेन पेन हाथ लग गया,
अब लिख कर कुछ दिन रखती,
कई दफा पढ़ती, फिर फाड़ दिया करती।
न जाने कितनी मन की बातें यूं ही लिख कर, मिटा कर,फाड़ कर,
अपना वक्त ज़ाया किया।
स्कूल से बस में लौटते वक्त यूं ही खिड़की के बाहर घंटो देख,
अपना वक्त ज़ाया किया।
कभी गैर कीमती तोहफा साल दर साल संभाल कर रखने में,
अपना कितना वक्त ज़ाया कर लिया।
कभी पसंद की किताब पढ़ के वक्त ज़ाया कर दिया,
तो कभी मिट्टी में पौधे लगा कर और गमलों में रंग भर कर
वक्त को ज़ाया कर लिया।
और मैं भूल जाती हूं, वक्त के साथ आगे बढ़ कर
जो बीता है, और शायद जो बीत रहा है।
क्योंकि अब मुझे वक्त ज़ाया करना,
गैर जरूरी चीजों में जरूरी नहीं लगता।
वक्त तो बट गया है,
उन सब में जो मुझसे खुद को जोड़े हुए है,
अब वक्त बिलकुल ज़ाया नहीं होता।
वक्त का सही इस्तमाल होता है।

~Jaan_writes

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