चरित्र परिचय :
चुको सिंह - एक सामान्य पढ़ा लिखा अगडी जाति का युवा
मन्दाकिनी सिंह - चुको सिंह की पत्नी
शिवजी सिंह- चुको सिंह के बड़े भाई
जब जिन्दगी बुनियादी जरुरतों की बुनियाद पक्की करने में व्यस्त हो तो वहां जज्बातों की लोड कौन लेता है।
चुको सिंह का परिवार भी कुछ ऐसे ही दौर से गुजर रहा था . एक बढ़िया खाता पीता घराना जब बंटवारे के बाद अलग अलग रहने लगे तो दृश्य बदल सा जाता है. एक ही मकान में अब चार परिवार रहने लगे थे यूँ रहते तो पहले भी वे वहीँ थे लेकिन तब एक ही परिवार के हिस्सा थे. अब तो एक परिवार का मालिक शिवजी सिंह थे तो दुसरे के चुको सिंह . "हुकूमत घट गई थी पर शान घटने का नाम ही नहीं ले रही थी."चुको भाई के हिस्से में जमीं का एक छोटा सा टुकड़ा आया था, जिसमे बमुश्किल खाने भर अनाज पैदा हो सकती थी. लेकिन चुको भाई के दिन भर ताश पत्ती खेलना, शाम को गांजा मंडली में बैठना बदस्तूर जारी था. आखिर चुको भाई गाँव के अगडी जाति के जो ठहरे, खेती करने के लिए जमीं नहीं बची तो क्या , आरक्षण के मार से दबे चुको भाई के पास कोई नौकरी भी नहीं थी तो क्या , ठसक बनाये रखने के लिए ताश खेलना , गांजा पीना जैसे इस जाति के युवाओं के लिए एक अनिवार्य अभिशाप बन गया था. हालात इतनी ख़राब हो गई थी की आज शाम को खाने के लिए दिन की बची हुई बासी रोटी और पीने के लिए कुँए का पानी मात्र था.
शाम को जब चुको भाई थके हारे (ताश खेलकर) घर को लौटे तो , घर का नजारा कुछ विचित्र था.
मन्दाकिनी (चुको सिंह की पत्नी) पुरे घर को अपने सर पर उठा रखी थी. गोद में चार महीने की बच्ची को दबाये वह जैसे अपने पति के आने का ही इन्तेजार कर रही थी. चुको सिंह के आते ही मन्दाकिनी बरस पड़ी -
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क्या विकाश पगला गया है?
Historia Cortaकहानी एक ऐसे शख्स की जो परिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के इंद्रजाल से बाहर निकल कर समाज हित में अपने आपको खपाने की ख्वाहिश रखता है