काश

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काश हर बात काश पर न
सिमट जाती।
काश यूँ ही हर बात न
अटक जाती।

काश खावबो के समंदर में
शब्दों का पहरा न होता।
काश हर बात पर किसी और का
पहरा न होता।

काश बातों की मर्यादा भी होती,
काश दुनिया में कुछ चीज़े
जररूरी न होती।

काश भावनाओं की शर्तें
न होती।

काश दुसरों की वजह से इस रूह
को परेशानी न होती।
काश औरों के कारण इन आँखों
में पानी न होती।।

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