नज़रिया

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"नज़रिया", अगर ये कहुं,
इंसान के व्यक्तित्व का दर्पण होता है।
तो सभी एतेफाक़ रखेंगे।

ये सवाल ज़ेहन में आया,
और मन व्याकुल हुआ।
कशमकश भी वाजिब थी,
लड़ाई अपने वजूद की थी।

गश्त करते याद-ए-माज़ी में,
दस्तक देती हर तारीख थी।
हर पहलू की तसदीक हुई,
न कहीं मुकम्मल जवाब मिला।

फ़क़त, तसल्ली इस बात की रही
आंखों में वर्षों का तजुर्बा था।
जन्मदाता मेरे जिसके आइने से,
मैनें दुनिया देखा था।।

जब 'मैं' हुआ, उस मकाम पर,
अय्यार मयस्सर, कुछ यार मिले।
और उनकी रहनुमाई ने,
मेरे नज़रिए को आयाम दिए।

सफ़र में ये इल्म हुआ,
ये तज़ुर्बे की मोहताज है।
हर पहलू में कुछ खास है,
या यूं कहूं "नज़रिया", तो बस नज़रिए की बात है.......।

~~अभिनीत

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