दूसरा बचपन - रंजन कुमार /रमेश देसाई

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राजेश नियत 06-36 की गाड़ी पकड़ने के लिये चर्च गेट स्टेशन में दाखिल हुआ. स्टेशन की भीड़ देखकर चकित रह गया. कहीं पैर रखने की भी जगह नहीं बची थी
बार बार माइक पर अनाउंस हो रहा था.

" ओवर हेड वायर टूट जाने की वजह से सभी अँधेरी, बोरीवली और विरार जाने वाली सभी गाड़िया दस से पंद्रह मिनिट देरी से चल रही हैं. " यात्रीयो की असुविधा के लिये क्षमा चाहते हैं!"

बहुत देरी हो रही थी. राजेश को याद आया. उसे अपनी बेटी को डोक्टर के पास ले जाना था. 06-45 हो चूकी थी. और माइक में वही जाहिर हो रहा था.

' 06-36 की बोरिवली लोकल प्लेटफार्म दो नंबर की वजह चार नंबर पर आयेगी!! '

यही तो रोज का मसला था.

यात्रियों को प्लेटफार्म बदलने से भगादोड़ी करनी पड़ती थी.

गाड़ी आने की तैयारी थी.

राजेश पटरी लाँघकर दो नंबर के प्लेटफार्म से चार नंबर पर पहुंच गया.

गाड़ी प्लेटफार्म पर दाखिल हुई. ऊस को रुकने से पहले राजेश चलती गाड़ी में एक डिब्बे में सवार हो गया. चौथी सीट खाली देकर ऊस को पकड़ने लिए वह ऊस दिशा में भागा. पीछे से जोरो का धक्का आया और राजेश चौथी सीट पर मानो गिर सा गया. तीसरी सीट पर एक बुढ़ा बैठा हुआ था. सत्यम ऊस के साथ टकरा गया. ऊस का लंच बोक्स ऊस के जड़बे को लग गया और खून की छोटी सी टसर फूट निकली और वह राजेश पर बरस पड़े. वह उस के लिये बूढ़े शख्स की माफ़ी मांगना चाहता था. लेकिन उन्होंने राजेश को कोई नहीं दिया और शुरू हो गये.

" तुम अंधे हो ? तुम को दिखता नहीं क्या? तुम्हारा लंच बोक्स लग जाने से खून निकल आया हैं.. "

उनके हाथ रुमाल में खून के एक दो धब्बे दिखाई दे रहे थे.. उनके बचकाने व्यवहार सोरी शब्द गले में ही रुंध गया. हमदर्दी पाने का अधिकार खो दिया. राजेश की ख़ामोशी पर वह और भड़क गये.

उन्होंने गुस्से में राजेश को आदेश दिया.

" चलो मुझे डोक्टर के पास ले चलो. "

वह यहाँ भी नहीं रुके. उन्होंने ने राजेश के हाथों से लंच बोक्स छिनने का प्रयास किया. सहयात्री उन का व्यवहार देखकर चकित रह गये.

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