"आज गुड़िया दी की तिलक जानी है। देख तो नीतू, कितना सामान है यहाँ। कसम से, पुरे साल, दी को कुछ भी नहीं खरीदना होगा रसन के सिवाय।"
"अरे पिन्नी, तू सुच में भोली है। इतना सामान कैसे विदेश ले जाएगी गुड़िया दी। वहां तो बस दो जोड़ी कैसे ही ले जा पायेगी। अरे येह सब तोह लोगों को दिखने का है। बाद में दी की सास सब अपने कब्जे में कर लेगी।" नीतू ने किसी बड़ी बूढी जैसा जवाब दिया फट से।
"अरे हाँ, तू सच कहती है नीतू, कहा येह सब दी अपने साथ ले जाएगी। इससे अच्छा तो इतने पैसे दी के अकाउंट में दाल देते शर्मा चाचा। काम से काम जरुरत में काम आता। फालतू का इतना खर्चा किया।"
अचानक पीछे से किसी ने एक नयी चप्पल से हमला कर दिया। सर खुजाते पीछे देखा तो अम्मा बड़ी बड़ी आँखों में लाल लाल खून भरकर घर रही थी। ऐसा लगा जैसे अभी यही सबके सामने हम दोनों को खा जाएगी। में फट से चुप हुई। अम्मा का तो भूल ही गयी थी। नीतू भी सहम गयी।
"लगता है पिन्नी तू तो गयी आज। लेकिन हुआ क्या, येह तेरी आमा ने चप्पल से तेरी सुताई क्यों की। हमने कुछ गलत तोह बोलै नहीं।" नीतू धीरे से कान में फुसफुसाई।
"पता नहीं, येह अम्मा भी, कब क्या कर जाये। मुझे सच्ची नहीं पता अभी चप्पल क्यों मारा उसने?" मैँ सर हिलाते बोली।
वापस पलट कर देखा तोह अम्मा अभी भी घर रही थी। मरती क्या न करती। चुपचाप उसकी चप्पल उठाःई और अम्मा को वापस उसकी चप्पल देने उसकी ओर गयी।
"चुप नहीं रहा जाता तुम दोनों से। जब देखो पटर-पटर। अभी चार लोग सुनेगे तुम लोगो की बातें तो क्या कहेंगे। तुम्हे क्या लेना गुड़िया की दहेज़ से। चलो निकलो यहाँ से। बस इज़्ज़त ख़राब करना आता है आज कल के बच्चो को। कुछ भी कही भी सुरु हो जाते। इतना भी नहीं सोचना की हर रीती-रिवाज़ किसी न किसी वजह से बनायीं गयी है।"
"और क्या पिन्नी की अम्मा, सोचो गुड़िया का ससुराल भर जायेगा इतने सामान से।अपनी गुड़िया की कितनी ऐठ रहेगी।सास का तोह मुँह बंद हो जायेगा येह सब देखकर। लेकिन आज कल के बच्चे, हर वक़्त उल्टा ही सोचते है। पिज़्ज़ा, बर्गर खा खा के इनका दिमाग भी वैसा ही हो गया है।" बगल बैठी गुप्ता चची ने आग में और घी डाल दी।

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anaam rista
General FictionA hindi story about a middle-class girl with innocent dreams and the fight to establish her own identity