#edited_by Kaveri Purandhar
शाम हो गयी है, दी की बारात आने का वक़्त हो गया है। मैं अपना सैटर्न वाला लहंगा पहनकर तैयार हो गयी थी। ब्यूटिशियन ने मुझे अच्छा सजाया था। मैं खुद ही हैरान थी अपने आप को देखकर। ऐसा लग रहा था की आईने के सामने कोई और ही है, बिलकुल अनजान सी, जैसे कोई एक दम नया इंसान खड़ा हो जिसे मैं पहली बार देख रही हूँ। मैं बार-बार अपने आप को निहारती ही जाती।क्या यह मैं ही हूँ? येह खूबसूरत हिरणी सी कजरारी आँखे, गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ, हलके गुलाबी गाल, सच है न, थोड़ा सा मेक अप और इंसान कैसे बदल जाता है। रही सही कसर मेरे लहंगा ने पूरी कर दी। बाहर निकली तो आमा की अम्मा की आँखे चमक गयी मुझे देखकर। मेरी बल्लैया लेकर बोली "देख तो अपनी पिन्नी कितनी खूबसूरत लग रही है, सारे मोहल्ले मैं है कोई अपनी पिन्नी सा। थोड़ा सा सज ली तो कैसे निखर गयी। हाय, कहीं मेरी ही नज़र न लग जाये इसे।" मेरा छूटकु भाई भी मुझे ऐसे घुर रहा था जैसे भूत देख लिया हो।
"अम्मा, पक्का यह दी ही है न। कही लड़की बदल तो नहीं गयी?" उसने मुझे चारों तरफ से निहारते हुए पूछा।
"चल पगले, मत सता अपनी दी को। आज तो मेरी पिन्नी का दिन है। देखना कितने रिश्ते आएंगे आज अपनी पिन्नी के लिए।" अम्मा ने अपना सीना चौडा करते हुए बोला।
"अम्मा, तुम फिर शुरू हो गयी।" मैंने अपना पैर जमीं पर पटकते हुए बोला। आज कल पता नहीं अम्मा पर कौन सा भूत सवार हो गया है मेरी शादी का। उठते बैठते बस एक ही बात।
खैर पहुंच गयी मैं शादी में सज धज के। मूड तो अम्मा ने पहले ही ख़राब कर दिया था। एक कोने में सबसे छुपकर गोलगप्पे पर हाथ साफ़ करना इस वक़्त सबसे अच्छा लग रहा था।
"दस या बारह?" नीतू ने कोहनी मरते हुए पूछा।
"हैं? मतलब?" मैंने हैरान होते हुए पूछा।
"अरे महारानी , दसवां गोलगप्पा है या बारहवां? सिर्फ इससे ही पेट भरना है क्या? आगे तो चल, वह पिज़्ज़ा है दूसरे कार्नर पर। आगे और भी मजे की चीज़ें है। क्या गोलगप्पे पर टूटी पड़ी है?"
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anaam rista
सामान्य साहित्यA hindi story about a middle-class girl with innocent dreams and the fight to establish her own identity