(शाहिद का मतलब: eye witness)
क्या होता गर प्रतिस्पर्धा प्रिय प्राणों से न होती?
बच्चों में बचपना बचा रह जाता शायद,
पर उस शायद का शाहिद मैं नहीं।
क्या होता गर फैसला सोच, समझ व समय से लिया होता?
पछतावे का पर्दा पलकों पर पहरा न देता शायद,
पर उस शायद का शाहिद मैं नहीं।
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My Writings of The Past Years
RandomA student fights her way through an exam, ghosts become gods.... and so much more. Read on and enjoy! Completed!! ... well, every chapter is complete in itself. This is a collection of whatever I have written in the recent times. It includes poems...