निराश न हो!

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सहारा मिला या मिला ही नहीं हो।

दिलासा दिया या दिया भी नहीं हो।।

हमारा कहा या कहा भी नहीं हो।

भले ज़िंदगी में मिले जो न चाहा।।


निराशा चहूँ ओर फैली दिखाऊँ।

तथा रेणु से और मैली बताऊँ।।

पराकाश में तार-सी दामिनी भी।

पुनः आस का बीज बोती दिखी है।।


सवेरा हुआ ही कि पक्षी टटोलें।

नवाकाश की वो बढ़ी जो भुजाएं।।

पयान्नादि खोजें प्रभा की दिशा में।

हुई हो भले हार बीती निशा में।।


दिखाई नहीं धुन्ध में दे रहा है।

सुरावास जो तुंग के शृङ्ग पे है।।

सुनो किन्तु आँखें ज़रा बंद करके।

सुनाई पड़ेंगीं परे घण्टिकाएँ।।


जरा-जन्म-देहान्त जो हाथ में ना।

डरा क्यों हुआ है उसे देखके तू।।

कभी दैव भी क्या किसी का हुआ है।

निराशा परावर्तनी भाग्य ही है।।


विपाशा-मनोवृत्ति की चेतना से।

बचा ले सभी कल्पना के उजाले।।

बुझा जो दिया ये दिया आपदा ने।

रहेगा अँधेरा सदा ही दिवा में।।

- Jitender Kumar Yadav

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