उम्मीदों की आखिरी मंजिल (Last destination of hope)

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हर इंसान अपनी आखिरी मंजिल की तलाश में रहता है।  इस यात्रा में मनुष्य अपना संसार स्वयं स्थापित करता है।  मनुष्य की अंतिम यात्रा यही संसार तय करती है।  यही वह मंजिल है जिससे व्यक्ति अपने परिवार के बीच खुद को सुरक्षित पाता है, यही वह आखिरी मंजिल है जिसकी मदद से व्यक्ति अपने परिवार की कमियों और परिस्थितियों की हर मांग को पूरा करता है।  यह अंतिम मंजिल है, जिसे पाकर व्यक्ति राख के ढेर में सिमट जाता है।  उसके बाद न किसी वासना की इच्छा और न भूख, न किसी परिस्थिति की मांग, न पारिवारिक जिम्मेदारियों का झंझट, न शारीरिक कष्ट की अनुमति, न सांसारिक दुखों के उतार-चढ़ाव, न घर, न पारिवारिक लगाव, न सब कुछ।  न देह है, न रिश्तों की डोरी, न देश की बेड़ियाँ।  न पारिवारिक उत्पीड़न और न देश की विडंबना को भय।  जलती चिता के सामने लोगों का एक समूह खड़ा है।  चिलचिलाती हवाओं के बीच सन्नाटा है।  अंत में यही सन्नाटा कहता है कि- हे मुसाफिर, यही तो था तेरी मंजिल, पर सांसारिक विघ्नों (मोह, माया) में आसक्त होकर तूने अपना सारा जीवन गवां दिया है।
    आपने जो पाया है, जो खोया है और जो कमाया है, वह सब जो आपने अपने जीवनकाल में कमाया है, आपके सभी प्रियजनों ने छीन लिया है।

Every human is in search of his last destination.  In this journey man establishes his own world.  This world decides the final journey of man.  This is the destination from which a person finds himself safe in the midst of his family, this is the last destination with the help of which a person fulfills every demand of his family's shortcomings and circumstances.  This is the last floor,

after which the person gets reduced to a heap of ashes.  After that neither desire nor hunger, no demand of any circumstance, no hassle of family responsibilities, no physical pain allowed, no ups and downs of worldly miseries, no home, no family attachment, nothing at all.  There is no body, neither the strings of relationships, nor the fetters of the country.  Neither family oppression nor fear of the irony of the country. 

A group of people stand in front of a burning pyre.  There is silence amidst the scorching winds.  In the end, this silence says that - O traveler, this was your destination, but you have lost your whole life by being enamored of worldly obstacles (attachment, delusion).

     What you have found, what you have lost and what you have earned, all that you have earned in your lifetime, all your loved ones have taken away.

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