ये संसार, सभ्यता और संस्कृति। शासन और प्रशासन, जात पात धर्म और मजहब, लिंग योनि रिश्ते नाते और परिवार दर्शन ये सभी एक दूसरे को जोड़ने वाली तथा संसार को संचालित करने वाली बिडंम्वना मात्र है। ये मकान दुकान पैसा और परोपकार ये सभी प्रहित के धरोहर हैं हम सब इनके दास हैं और हम सभी अपने अपने दासत्व को निभा रहे हैं सच कहें तो संसार और जीवन को चलाने के लिए इन सब चीजों की कोई जरूरत ही नहीं। जब संसार में जीवन के बीच ये सभी विडम्बनाएं नहीं थी, तो भी जीवन और संसार अच्छी खासी चल रही थी और आज भी चल रही है। संसार को चलाने के लिए चाहिए एक अच्छा वातावरण और शरीर को जीवित रखने के लिए सबसे जरूरी चीज है प्रयाप्त मात्रा में भरपूर भोजन। हम सब जानते हैं कि भोजन को कमाना नहीं उगाना पड़ता है अब ये बाते आप पर ही निर्भर करता है कि आप भोजन किस तरह का उगाते हैं जैसी भोजन होगी वैसी आपकी मनोदशा होगी। संसार में संपूर्ण बिषाद की जड़ें भूख और भोग से है। यही सूख दुःख और पुण्य, पाप के सारे कारण भी हैं। भूख और भोग के न केवल हम लोग ही दिवाने है अपितु सारा ब्रह्मांड ही एक दूसरे का भोग और भक्षण कर रहे हैं। यही पाप, पुण्य और परोपकार तथा परिवर्तन का करण और संपूर्ण साधन भी है। भूख और भोग का न कोई धर्म होता है और न उसकी कोई जात होती है। जब किसी को भूख और भोग की तलब लगती है तो उस समय उसके लिए पाप और पुण्य कोई मायने नहीं रखता है। इस बात को हर कोई अच्छी तरह से जानतें भी हैं और मानते भी हैं। प्राणी प्रजनन की प्रक्रिया को इसलिए अंजाम देते हैं क्योंकि वह अपने अस्तित्व को और अपने वर्चस्वों को अनंत काल तक बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं ताकि धरती पर उसका अस्तित्व बना रहे लोग लोग इस क्रिया को एक सामाजिक दायरे में रहकर करते हैं। एक अस्तर से देखा जाए तो यह क्रिया गलत भी नहीं है क्योंकि यही उसकी बुढ़ापे का दल भी होता है और इसी से सांसारिक परिवर्तन भी संभव हो पता है। इस बात को बिल्कुल भी नाकार नहीं जा सकता कि हमें जो कार्य करना चाहिए वो हमलोग बिल्कुल भी नहीं कर पा रहे हैं। जबकि हम सभी जानते हैं कि ये उपलब्धियां जीवन और संसार को बनाये रखने वाली महत्वपूर्ण कड़ियां है। स्वर्ग और नर्क अवांछित आशाएं हैं जिसको हमलोग एक दूसरे से केवल मतलब बुझाने के लिए शेयर करते हैं। जन्म, मृत्यु परिवर्तन और प्रकाश तथा जीवन के लिए आत्मिक सुख शांति और बौद्धिक ज्ञान ये सभी जीवन और संसार के बीच की अभेदन शक्ति है जिसे भेदा नहीं जा सकता है। ये हमारे शरीर के आंतरिक भागों में असिमित मात्रा में उपलब्ध होता है। आप उस चीज को भेद या नाकार नहीं सकते जिसको प्रकृति ने स्वयं बौद्धिक रूप से हमारे अन्दर डाला है।
यदि मनुष्य को प्रकृति से परे की सत्ता का दिग्दर्शन हो जाए तो उसके पास लेशमात्र भी क्लेश नहीं रहेगा, वो इच्छा रहित होकर संपूर्ण माया से पार पा लेगा। तब ना उसके पास वासनाओं में लिप्त कोई भूख होगी और न कोई क्रूरतापूर्ण कार्य ही शेष रह जायेगा। तब न कोई उसका अपना होगा और न कोई पराया। वो क्रोध और हिंसा को त्याग कर चित और चिंता से मुक्त हो कर शून्य में प्रवेश कर जायेगा। उसका अभिमान और अभिनय अहम अभय संपूर्ण रूप से समाप्त हो जायेगा प्रथ्वी पर कुछ मूढ वर्ग के बुद्धिजीवी लोग हैं जो जनसंख्या के वृद्धि से चिन्तित हैं परन्तु वे ये नहीं जानते कि एक समय था जब दिन दो गुणा और रात चौगुनी रुप से जनसंख्या बढ़ रही थी और आज भी वही चल रहा है फर्क बस इतना है कि उस समय जनसंख्या बिस्तर की आवश्यकता थी पर आज आंकड़ा पार कर रही है। परंतु आपको ये पता होना चाहिए कि कोई भी चीज अपनी हैसियत, काबिलियत और क्षमताओं अनुकूल ही भार उठाना पसंद करती हैं और यदि भार क्षमता से अधिक हो जाए तो उसे हर संभव कम करने की कोशिश करती हैं। और निसंदेह वह उसे कम भी कर लेती है। जब जनसंख्या की जरूरत थी तो उस समय जनसंख्या बढ़ रही थी और आज जनसंख्या बढ़ रही है वैसे ही कम भी हो रही है। मृत्यु चाहें भूखमरी, अकाली, महामारी या प्राकृतिक पराव की वजह से हो , या फिर जीवन काल के जाल में उलझ कर खत्म हो। ये अपने हिसाब से बढ़ और घट रहा है आप इसे अनुभव कर सकते हैं, कल सबको अपने घेरे में लीए खड़ी है। तभी तो लोग छोटी छोटी बातों को लेकर मरने मरने को तैयार हो जातें हैं, एक बात आप अच्छी तरह से जान ले कि जीवन निर्माण असंभव भरा कार्य है परंतु मृत्यु सबके अपने-आपने हांथो में है, इसे जब चाहे आप नष्ट कर सकते हैं। जनसंख्या नियंत्रण करने की आपको कोई आवश्यकता नहीं। ये कार्य निःसंदेह अपने आप ही संभव हो रहा है। यह सिस्टम अपने हिसाब से गतिमान है। आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि जब जनसंख्या की जरूरत थी तो यह सिस्टम इस तरह से कार्य कर रही थी कि नर के स्थान पर मादाएं अधिक थी एक एक न पर सो सो मादाएं होती थी और जब अभी जनसंख्या कम करने की आवश्यकता है तो मादाओं के स्थान पर नर की जनसंख्या अधिक है अगर आप प्रकृति के पराव को समझना चाहते हैं तो आप इसे भाप कर महसूस कर सकते हैं कि ये प्रकृति आखिर क्या करना चाह रही है।आप इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं, यदि दस महिला पर एक पुरुष को रखा जाए तो मातभावुक्ता भले ही महिलाओं को पूरी न हो, परंतु सभी महिला पूरे दस बच्चे को जन्म दे सकती है। वहीं दस पुरूषों पर यदि एक महिला को रखा जाए तो मातभावुक्ता सभी पुरुष का मिट सकता है परंतु वो दस पुरुषों के बावजूद भी वो एक समय में एक ही बच्चा पैदा कर कती। वही कार्य आज जीवन और प्रकृति के बीच घटित हो रही है। इसके बिषयों में आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं आप केवल वो कार्य संपन्न कीजिए जिसके लिए आपका जन्म हुआ है।
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आत्म दर्शन
Ciencia FicciónThe purpose of this book is to strengthen humanity and build human society from a new end.इस पुस्तक का उद्देश्य इंसानियत को सुदृढ़ करना तथा मानव समाज को एक नए सिरे से गढ़ना है।