क्या आपको पता है कि इस शारिरिक संरचना वाले शरीरों में मृत्यु जैसी कोई भी इनपुट्स नहीं डाला गया है
ये जीवन केवल प्रजन्न और प्रगति के लिए बाध्य हैं यही कारण है कि जब हम प्रगति या प्रजन्न प्रक्रिया में संलिप्त होते हैं तो उस घड़ी हमें मृत्यु का भय नहीं होता है मृत्यु एक अंतः शब्द है जब हमारे अंतः करण में परेशानी या समस्या होती है तब या फिर जब एकांत नीरव में होते हैं तब मृत्यु का भय होता है उसके उपरांत हम सब बगैर मृत्यु के भय के ही जीवन जीते हैं
भय प्रकृति में है, परमात्मा में नहीं। जब आप परमात्मा में प्रवेश पाते हैं तो आपका ये भय समाप्त हो जाता है वहीं जब आप प्रकृति में प्रवेश करना चाहते हैं तो आपके समक्ष और आपके इर्द-गिर्द केवल भयावह पहलु ही दिखता है क्यों? क्योंकि जीवन में होने वाली पीड़ाओं की अनुभूति हो सकती है किन्तु मृत्यु के दर्दों अनुभूति कभी नहीं होती है। फिर भी हम सब मृत्यु से पहले ही डरते हैं क्यों? जीवन की ओर ले जाने वाले पहलुओं से अक्सर हमलोग डरते और घबराते हैं, ऐसी चीजों को अक्सर हम लोग नजर अंदाज करने की कोशिश करते हैं या फिर हम लोग ऐसी चीजों तक पहुंचाते पहुंचाते या फिर समझते समझते बहुत देर कर देते हैं पता नहीं क्यों हम लोग मृत्यु की ओर ले जाने वाले पहलुओं से जल्द ही प्रभावित होकर बगैर सोचे समझे ही उसके पीछे भागने लगते हैं आपको पता है कि हम लोग ऐसा क्यों करते हैं क्योंकि हम पर प्रकृति का प्रभाव होता है यही कारण है कि हम सब जीवन और परमात्मा को समझे बगैर ही प्रकृति से बहुत जल्द ही प्रभावित होकर उसके ओर आकर्षित होने लगते हैं और इसी चीज का फायदा न केवल प्रकृति ही अपितु और भी कई चीजे हमारी फायदा उठाने में कसर नहीं छोड़ती हैं और इसी बजह से हम लोग बहुत जल्द ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। प्रकृति का एक मात्र प्रवृत्ति ये है कि वो उभर रहे जीवन जड़ मूल्यों को समूल्यतः मृत देखना चाहती है वो इसलिए क्योंकि प्रकृति को जड़ जीवन को चलाएं मान रखने के लिए उसे अपने बहुत से उर्जा खोने पड़ते हैं और वो ऐसा हरगिज नहीं करना चाहता है। इसलिए वो हर जीवन जंतुओं को मृत्यु की ओर आकर्षित करता है। जीवन और प्रकृति के बीच सदियों से चली आ रही ये युद्ध आज भी कायम है। परंतु कोशिशों का नाम ही है जीवन। सदियों से चली आ रही इन युद्धों के बीच जीवन आज भी कायम है जीवन की जड़े आज भी भलीभांति पनप कर भल फूल रही है ये आज भी अपनी जनन और प्रजनन की प्रक्रियाओं भलीभांति शुद्ध करने में जुटी है। एक बात तो तय है कि जो जीव प्रकृति के प्रकोपों के अनुकूल स्वयं को ढालना सीख लिया है उसका अंत किसी भी काल में संभव नहीं है। परंतु वह जीवन बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है जो स्वयं को प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल ढालने में समर्थ नहीं हैं उसका समूल नाश तय है।जीवन की कोई आयु सीमा नहीं होती है जब तक आप जीवन रुपी संचार व्यवस्था को चलाए मान रखने सफल हैं तब तक आप रोग मुक्त और सुरक्षित हैं जीवन की इस प्रतिस्पर्धा में थोड़ी सी चुक आपको मृत्यु के मुख्य तक पहुंचाने में सक्षम हो जाती है और तब आप एक निश्चित समय सीमा से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। आप सभी को ये ज्ञान होना चाहिए कि आप प्रकृति को क्षति नहीं पहुंचा रहे हैं अपितु अपनी मृत्यु के लिए उनकी सहायता कर रहे हैं। और यही सत्य है इसे नाकारा नहीं जा सकता है। इस बात को आप अच्छी तरह से समझ लीजिए कि आपकी हर एक एक्टिविटी प्रकृति को बिल्कुल भी छाती नहीं पहुंचा पहुंचती वह उल्टा आपको ही नुकसान पहुंचती है चाहे वह एक्टिविटी किसी भी क्षेत्र में हो उसका प्रभाव आपके ऊपर ही पड़ता है ना की प्रकृति के ऊपर हां यह एक बात अलग है कि आपके किए गए कार्यों का प्रादुर्भाव कुछ अन्य जीवों पर भी पड़ता है परंतु प्रकृति पर इसका कोई दूर प्रभाव नहीं पड़ता। क्या आपको यह नहीं लगता कि आप अपनी सुरक्षा के आर में औरों के लिए भी और खुद के लिए भी मौत का जाल बुन्ने लगे हैं आप इस बात को लोहा मान लीजिए कि आप अपने लिए कितनी भी करी सुरक्षा क्यों ना बना ले परंतु प्रकृति के आगे यह सभी केवल एक दीवार गिरने के समान है। हमारी सुरक्षा या नहीं है कि हम तरह-तरह के मिसाइल का निर्माण करें और यह मिसाइल कुछ हद तक हमें धरती के लोगों से बचा सकता है परंतु इसमें भी हमारा ही नुकसान है एक इंसान ही इंसान को मारेगा और उसके साथ-साथ अनजान जीवन का भी विनाश होगा यह आत्मघाती मिसाइल हमें प्रकृति के प्रकोप से नहीं बचा सकता हमारी सुरक्षा इसमें भी नहीं है कि हम सूरज और चांद पर अपना यान भेज कर वहां के वातावरण का पता लगाये हमारी सुरक्षा इसमें है कि हम प्रकृति के भौतिक नियमों को बनाए रखने का काम करें और धरती को जितना हो सके सुदृढ़ करने का प्रयास करें और एक इंसान दूसरे इंसान की सुरक्षा के बारे में सोच तथा अन्य जन्यजीवों की भी सुरक्षा को सुनिश्चित करें। इस बात को आप गांठ बांध लीजिए कि सब की सुरक्षा में ही हमारे जीवन सर्वोपरि होगी अन्यथा हम भी धरती पर नहीं होंगे सबके होने से ही हमारा जीवन संभव हो रहा है अन्यथा इंसानी जीवन का भी कोई नामों निशान नहीं होता इस बात को हमें समझना होगा कि जब तक धरती और धरती पर उत्पन्न प्रकृति का संतुलन कायम है तब तक जीवन संभव है और यह संतुलन तब तक कायम है जब तक धरती पर जल, वायु और प्रकाश कायम है तब तक जीवन संभव है। और यह सभी चीज तभी तक सुधा और संभव रहेगी जब हमारा सोच एक होगे। हम लोग तब तक रक्तपा करते रहेंगे जब तक हम लोग जात धर्म के नाम पर लड़ते रहेंगे और हमारे साथ-साथ वह प्राणी भी पीसते रखेंगे जिसका कोई दोस्त नहीं है। हम लोग अपनी अपनी सीमाओं को लेकर तब तलक लड़ते रहेंगे जब तक कि हम यह नहीं मान लेते की एक दुनिया और एक इंसान है हम
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आत्म दर्शन
Ficção CientíficaThe purpose of this book is to strengthen humanity and build human society from a new end.इस पुस्तक का उद्देश्य इंसानियत को सुदृढ़ करना तथा मानव समाज को एक नए सिरे से गढ़ना है।