Prologue

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"मर जाओ सब के सब। पूरी दुनिया खत्म हो जाए। कोई नहीं चाहिए मुझे यहाँ। ना मेरे आस पास, ना मुझसे दूर। सब गायब हो जाओ। क्यों कोई चैन से खुश नहीं होने देता मुझे? जैसे ही लगता है की किसी पे थोड़ा सा विश्वास कर लेना चाहिए, वह तुरंत, उसी वक्त अपना असली रंग दिखा देता है। और छोड़ देता है मुझे लटकता हुआ किसी खाई में। तंग आ गया हूँ सबके धोखे खाते खाते। अब नहीं करनी किसीसे कोई रिश्तेदारी। कल को अगर सबके सब मर भी गए, तो कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा मुझे। बल्कि मुझसे ज़्यादा खुश इंसान कोई नहीं होगा इस दुनिया में।"

कुछ ऐसे ही खयालातों में उलझा हुआ एक लड़का, अपने कमरे की छत को घूरता हुआ आँसू बहाए जा रहा था।

रात काफ़ी हो चली थी। ज़ाहिर सी बात थी, उसके आस पास सभी लोग गहरी नींद में थे, सिवाय उस लड़के के। आकेले ही, अपनी चादर में लिपटा हुआ वह, सिसकियाँ लेता हुआ पूरी इंसानी जात को कोसे जा रहा था।

नींद तो जैसे उसकी ज़िंदगी में कभी थी ही नहीं। रात और अंधेरी होती गई, और उसके खयाल और शापित होते गए।

अस लड़के के बिस्तर से थोड़ी दूर, उसी के कमरे की बैल्कनी के बाहर, एक साया उसे बड़े गौर से देख रहा था। यह साया उसके हर खयाल को सुन सकता था।

शायद उस साये से ज़्यादा आज तक उस लड़के को कोई समझ ही नहीं पाया था। मगर उस रात, वह साया भी अपने आप को लाचार महसूस कर रहा था। जैसे उसके हाथ बंधे हों। वह चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

'ऐसा भी क्या हो गया? सब ठीक ही तो चल रहा था ना? फिर अचानक ये कैसी हालत बना ली है तुमने अपनी? ना जाने कितने बार रोए होगे तुम। और हर बार अकेले? किसीसे कुछ कहते, कुछ बताते, तो हम सब कुछ छोड़ कर आ जाते तुम्हारे पास। अभी भी आने को तैयार हूँ मगर... क्या करूँ? ऐसा क्या करूँ जो तुम्हारे दर्द बाँट सकूँ? नहीं देखा जा रहा मुझसे ये सब...'

वो साया उस लड़के को नम आँखों से देखे जा रहा था जब की उस लड़के को किसी साये की भनक तक नहीं थी।

थोड़ी देर बाद जब उस लड़के के आँसू सूखे, तो वह अपने बेड से उठ बाथरूम में मुँह धोने के लिए चला गया। अपने मुँह पर पानी के छींटे डालते ही उसे अपने चेहरे पर एक अलग सी ठंडक महसूस होने लगी।

उस लड़के के लिए हर दूसरी रात रोना और उसके बाद मुँह धोकर सो जाना कोई नई बात नहीं थी। मगर उस रात उसे पानी हर रोज़ से कुछ ज्यादा ही ठंडा लग रहा था।

पानी बस इतना ही ठंडा था के उसके चेहरे पर लाली आ जाए और उसे साफ, सुथरा, ताज़ा सा महसूस हो।

इससे पहले वह लड़का अपना सिर उठाकर पास रखा तौलिया अपने हाथ में लेता, उसकी नजर अपने सामने आइयने पर पड़ी।

उस आइने में से एक हाथ निकलता उसी लड़के के चेहरे की ओर बढ़ रहा था।

उस हाथ की उंगलियों ने जैसे ही आइने और उस लड़के के चेहरे के बीच की दूरी तय करी, तो पीछे से गाढ़े खून की कुछ धाराएँ उस हाथ पर लिपटते हुए बहने लगीं।

खून की कुछ बूंदें हाथ पर से बहती हुईं वॉश बेसिन में गिरने लगीं।

खून के साथ बेसिन के नल से टपकती पानी की बूंदों की आवाज़ें उस बाथरूम में गूंज रहीं थी।

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"All poetry is pretentious."

~ Someone great.

(Maybe write-ups, too)

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