Symbolism

14 3 0
                                    

*

Oops! This image does not follow our content guidelines. To continue publishing, please remove it or upload a different image.

* . °•★|•°∵ ◇ ∵°•|☆•° . *

एक पौधा हुआ करता था मेरे कमरे में।
नन्हा सा वह, मम्मी की निशानी जैसा था मेरे लिए।
था वैसे वह उन्हीं की पसंद, मगर गुण सब मेरे वाले थे उसमें।
दिन भर झरोखे से आती किरणों, हवाओं, और बारिशों को मन भर महसूस करना,
बस यही आता था उसे। बिल्कुल मेरी तरह।
फिर बिना सोए, रात भर की चाँदनी, राह चलते अनजान लोगों, और बादल गरजने पर बिजलियों को देखना,
काफ़ी पसंद था उसे। बिल्कुल मेरे जैसे।
देखते न देखते, अकेला ही बड़ा होता चला था।
या शायद कभी किसी साथी की ज़रूरत ही नहीं थी उसे?
वह भी सोचता होगा, मैं जो हूँ उसके साथ।
पर मैं भी कब तक रहती? या रहना चाहती?

एक बार एक फूल उगा था उसमें, सुंदर सा, हल्के जामुनी रंग का।
चमकती धूप में खूब महकता था, धुंधली बारिश में खूब खिलता था।
मुझसे बेखबर वह, बिजलियाँ देखकर मुस्कुराता होगा, चाँदनी देखकर गाता भी होगा।
पौधे को मानो जैसे कोई साथी मिल गया हो, जैसे हमसफ़र आने से नया सफ़र शुरू होने को हो।
ठीक से याद तो नहीं पर इस बीच शायद एक आधी पंखड़ी टूट गई होगी उस फूल की।
तो वह पूरा ही काट दिया गया था, ताकि कोई बेहतर फूल खिल सके।
पर उस दिन से उस पौधे में कोई दूसरी कली खिली ही नहीं।

मैंने आज भी वह गमला उसी खिड़की के पास रखा है,
इस उम्मीद में की शायद, किसी दिन, जाने किस दिन, एक और फूल खिला सकूँ उसमें।
अपने जैसे कुछ गुण फिर से डाल सकूँ उसमें। अपने जैसा दोबारा देख सकूँ उसे।
लेकिन उसका मन अब ना तो हवाओं से, और ना ही राह चलते लोगों से भरता था।
सच कहूँ तो मैंने भी कुछ खास कोशिश नहीं की उसे रोचक रखने की।
अब वो बड़ा तो होता है, पर खिलता नहीं है।
अगर किसी दिन खिलता है, तो पहले जैसा चहकता नहीं।

एक जो पौधा हुआ करता था मेरे कमरे में,
काफ़ी बदल गया है, या शायद बहुत बढ़ गया है।

~ मृ ♡

Spilled Words, AssembleWhere stories live. Discover now