सोचती हूॅं आजकल
क्या हो जो मैं चली गईक्या हो जब एक दिन
ऑंख मेरी खुले नहीं
कितने होंगे आने वाले
कितने होंगे चाहने वाले
कितने ही जान आएंगे
बस आने के लिए आने वाले
क्या कुछ पीछे रह जाएगा
क्या साथ मेरे आएगाक्या जाने के बाद भी
मोक्ष मुझे मिल पाएगा
पर एक ख्याल पर ठहर गई
उस एक बात पर सहम गई
क्या हक भी है मेरे पास
की मन आया और चली गई
जो कीमत मेरे बढ़ने की है
जो कीमत मेरे पढ़ने की है
वह किसी और ने चुकाई है
उसमें बची अभी भारी उधारी है
जो आजकल में चली गई
जो उधारी वह बची रहीकिसी और के मत्थे
जाएगी और दोषी टू रह जाएगी
और फिर तू भूल गई क्या
मौत तेरी दूर नहीं क्यातेरे जाने के बाद की कीमत
तेरी आर्थी कैसे चुकाएगी
फिर क्या पता जिनकी आंखों से
तो उम्मीद करती यादों की
उनके लबों से तेरी याद परधारा बह सिर्फ कठोर बातों की
बोल क्या तू सह पाएगी
यह नजा़रे देख पाएगीजो सोचती है तू आज कल
क्या हो जो तू चली जाएगी
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Beheke Alfaaz
PoetryYe Alfaaz wo nhi jo sirf Zubaan se nikalte ho Ye wo Alfaaz hai jo dil ko chhu jaaye.