क्या हो जो मैं चली गई?

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सोचती हूॅं आजकल

क्या हो जो मैं चली गई

क्या हो जब एक दिन

ऑंख मेरी खुले नहीं


कितने होंगे आने वाले

कितने होंगे चाहने वाले

कितने ही जान आएंगे

बस आने के लिए आने वाले


क्या कुछ पीछे रह जाएगा

क्या साथ मेरे आएगा

क्या जाने के बाद भी

मोक्ष मुझे मिल पाएगा


पर एक ख्याल पर ठहर गई

 उस एक बात पर सहम गई

क्या हक भी है मेरे पास

की मन आया और चली गई


जो कीमत मेरे बढ़ने की है

जो कीमत मेरे पढ़ने की है

वह किसी और ने चुकाई है

उसमें बची अभी भारी उधारी है


जो आजकल में चली गई

जो उधारी वह बची रही

किसी और के मत्थे

जाएगी और दोषी टू रह जाएगी


और फिर तू भूल गई क्या 

मौत तेरी दूर नहीं क्या

तेरे जाने के बाद की कीमत

 
तेरी आर्थी कैसे चुकाएगी


फिर क्या पता जिनकी आंखों से

तो उम्मीद करती यादों की

उनके लबों से तेरी याद पर

धारा बह सिर्फ कठोर बातों की




बोल क्या तू सह पाएगी

यह नजा़रे देख पाएगी

जो सोचती है तू आज कल

क्या हो जो तू चली जाएगी

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⏰ पिछला अद्यतन: Sep 30 ⏰

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