प्रेम कि परियाँ

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रंग-बिरंगी तितलियाँ जो मेरे आसपास मंडराने लगी हैं,
सर्द मौसम में बसंत की कली बनकर खिलखिलाने लगी हैं।
तुम्हें देख दिल का यूँ थम सा जाना,
जैसे बर्फीला दिल किसी शोलों से पिघलने लगा है।
ये कैसा एहसास है
क्या प्रेम की परियाँ फिर से मुझ पर मेहरबान हुई हैं?
क्या फिर से कोई खामोश जादू चलने लगा है?
जैसे ही तुम्हारे पास से गुजरती हूँ,
ऐसा लगता है मानो आसमान सितारों से सज गया हो।
हवाएँ जैसे कोई मीठी धुन गुनगुनाने लगी हों,
ये परियाँ फिर शरारत कर रही हैं,
देखो, ये मुझे बेबस कर रही हैं।

तुम्हें एक नज़र देखने को,
मैं घंटों इंतज़ार करती हूँ।
तुम्हें देखते ही मिलती है मुझे एक सुकून,
ये एहसास क्या है?
क्या प्रेम की परियाँ फिर अपना जादू चला रही हैं?
क्या फिर से कोई खामोश जादू चलने लगा है?

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