इस गतिहीन , दिशाहीन जीवन को मिले नयी उडान प्रिय
तुम आ जाओ , अब आ जाओ, हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....
इस बैरी दुनिया ने,
किये बहुत से सितम मुझ पर,
पल-पल तरसी, पल-पल तडपी,
हुई बहुत बेचैन मगर,
मिले सुकून तब ही जब धरूँ तुम्हारा ध्यान प्रिय,
तुम आ जाओ , अब आ जाओ, हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....
अपने मन की आँखों से ,
किया तुम्हारा दीदार बहुत ,
तुमसे मिलने की चाहत में ,
मैंने किया इन्तजार बहुत ,
नाम तुम्हारा जुडे तो ,मिले मुझे पहचान प्रिय ,
तुम आ जाओ , अब आ जाओ, हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....
जग से ,जग के क्या शिकवे करूँ?
तुम मिलो तो क्यों किसी से डरूँ ?
साथ तुम्हारा पाऊँ तो चढूँ नये सोपान प्रिय ,
अब आ जाओ ,बस आ जाओ, हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....