क्या कहूँ !
खता उसकी नहीं
वो मजबूर है
कसूर उसका नहीं है कुछ
भी मेरे यारों
ये तो सब उसकी मर्यादा का
कसूर है !किसी को क्या परवाह उसकी
सबको अपनी इज़्ज़त का
गुरूर है
वो देखे भी तो कैसे मुझे
आंखों मे उसकी मेरा ही
तो नूर है !ना कहो उसे बेवफा
ऐ दुनिया वालों
वो तो मोहब्बते-वफा का
एक फितूर है
आना तो चाहती है वो मेरे पास
पर
रास्तों पर बिछा उसके मां-बाप
का इज़्ज़तों
का गुरूर हैये शहर है मुर्दों का
यहाँ सब अपनी दिखावे की
जिंदगी में चूर हैवो मेरे पास ना सही
पर मेरे दिल से भी
कहां दूर है
क्या करु यारों
ये दिल भी अब उसकी यादों
में तो जी हुजूर है
आज अल्फ़ाज़ भी मेरे
कह रहे की
ऐ - साज
ये कसूरे -इश्क़ के शहर में
आज तू भी मजबूर है !!!# तू मेरी कहानी का कभी ना खत्म होने वाला हिस्सा है------
लव यू।।।।।
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ख्वाबों का काफिला
PoetryA journey that cover life of a man with all emotion covered with shayaris , gajals, and thought . A book that covers all emotions .....