जज़्बात

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पता नहीं तुम जागे हो या सो गए,
कुछ दिनों से, सो नहीं पाया हूं मैं।
कुछ कहना चाहता हूं,
मगर कह नहीं पाया हूं मैं।

मुझे तलब हो गई हैं तुम्हारी,
ये बात कहना चाहता हूं।
कश्मकश में पड़ा था मैं,
अब तसल्ली करना चाहता हूं।

मुंतज़िर हूं अब जवाब का,
अनगिनत प्रश्नों पर विराम का।
मुकम्मल होना चाहता हूं,
अब मैं पूरक होना चाहता हूं।

पर ये मेरे जज़्बात हैं।
आपके पहलू का इंतजार हैं।
क्योंकि ये कोई कहानी नहीं,
ये रिश्ता है, कोई मनमानी नहीं।

                                   अभिनीत
                             

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⏰ पिछला अद्यतन: Jul 23, 2019 ⏰

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