"प्यास दरस की न बुझे,
जब तक नयन में तू न बसे।
क्यों है तू निर्मोही ग्वाले,
गोपियां ताके बांट तेरी अश्रु में डूबी,
और तू केवल मंद मंद हंसे।।"जग मोह से घिरा है या फिर हम मोह पाश में जकड़े हुए है इसका निर्णय करना अत्यंत आवश्यक है । मोह एक ऐसा विकार जो केवल हमारे नेत्रों के किसी के पसंद आने या न आने के ऊपर निर्भर करता है । उपरी सौंदर्य , हाव भाव ही पर्याप्त होते है इन नेत्रों को मोहित करने में ,किन्तु ये मन मोह को नहीं केवल प्रेम को स्वीकारता है ।
कभी स्वयं से प्रश्न करिएगा की "कृष्ण" इस नाम का सुमिरन होने से आपके समक्ष कोई चेहरा उभर आता है या फिर केवल अनंत प्रेम की अनुभूति होती है ।
प्रश्न करिएगा स्वयं से कि आप कृष्ण के तरफ उनके सांवरे रंग , मन मोहित नेत्र और मनभावन मोर पंख के कारण आकर्षित हुए है या फिर उस परब्रम्ह की महिमा की ओंर शरणागत हुए है जो कि केवल पारिशुद्घ प्रेम की अनुभूति करवाता है।"जोगन बन तेरी फिरत जयूं मैं ग्राम हो या नगरिया,
तोरे दरस की इच्छा की दासी , ओ रे सांवरिया।.............
कृष्ण प्रेम में रूप ,रंग ,आकर किसी भी वस्तु की कोई आवश्यकता नहीं होती है ,केवल प्रेम यही मायने रखता है ।
यदि आप सच्चे कृष्णप्रेमी हो तो सांवरे के किसी भी रूप से आप प्रेम कर पायोगे ।
कृष्ण नाम का अर्थ है आकर्षण ,वो अंधेरा जो आकर्षित करे।
काला रंग अशुभ का प्रतीक है ,लोग इसे शुभ कार्यों में देखना तक नहीं चाहते ।
किन्तु कृष्ण स्वयं श्याम है ,वो है जो हर किसी को इस मोह रूपी अंधकार से मुक्त कर निर्मोही बना देता है ।निर्मोही अर्थात जो संसार में रहकर भी संसार से विलग हो । जो अलख हो ,निरंजन हो ,वैरागी हो ,योगी हो ।
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अंतर्मन का दर्पण | ✓
Spiritualकुछ क्षण क्षणिक होते है, उन्हें उस क्षण में कैद कर लेना ही जीवन है।❤️