"मन के नाद छेड़ चला ,
वो छलिया देखो ! रुक जाओ मोहन,
करत श्रृंगार बांट निहारी तेरी दीवानी,
अब लताएं खोजे तुझे ,
देखो वेणु के स्वर से झूमने के लिए सज्ज है रासवन"संगीत हमारे जीवन का वो अर्थ है जो हमें ये सोचने के लिए बाध्य कर देता है कि हम कौन है,
क्या अस्तित्व है हमरा ,हम क्यों इस धरा पर आए ,और संगीत का उद्गम कहां से है?
और हो भी कौन सकता है ,जो चौसठ कलयों में निपुण हो और जो उन्हें अपनी ओंर जो आकर्षित करें वो तो हमारी प्यारी जूं श्री राधारानी ही हो सकती है।
रास और राधा दो ऐसे शब्द है जिनका अस्तित्व बिना एक दूसरे के अपूर्ण माना जाता है। आज इस गद्यांश में मैं मेरे दृष्टिकोण से आपको "रास" शब्द के अर्थ से अवगत कराना चाहती हूं।"रास में जब मग्न हो झूमे सखियां सारी ,
प्रेम भाव से भरे नेत्रों से असुवन बहे भारी , असुवन बहे भारी"
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अंतर्मन का दर्पण | ✓
Espiritualकुछ क्षण क्षणिक होते है, उन्हें उस क्षण में कैद कर लेना ही जीवन है।❤️