आत्मापर्ण ❤️

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"प्याला भी उस नाम का पिया,
जिसे देख धड़क जाए सबका हिया,
प्रेम में आकांक्षाए नही महत्व रखती है ,
ये पथ प्रखर समर्पण से होता है,
उस सँवारे को कुछ नही चाहिए,
बस समझाना है कि प्रीत सिद्ध आत्मा~अर्पण से होता है।"


इस यात्रा के प्रारंभ में ही मैन ये कहा था कि गणतव्य का महत्व नही होता।
ये बात तो सत्य है किंतु आप सबने ये अवश्य सोचा होगा कि ऐसा कैसे संभव है कि किसी यात्रा का अंत न हो ?
इसका उत्तर ये है कि मैं इस पुस्तिका को उस अनंत प्रेम की प्रतीकात्मक रूप देना चाहती हूँ जो अनंत से अनंत तक चलती आ रही है ।वो परिशुद्ध प्रेम जो हर भक्त और उनके भगवान के मध्य का सेतु होता है । मैंने श्री कृष्ण के विषय में बिना उनकी शक्ति का उल्लेख किये पूर्व के 3 गद्यांश लिख डाले ।इसका कारण ये था कि प्रभु को जानना हम सबके सामर्थ्य से परे है किंतु उस प्रेम का अनुभव हम अवश्य कर सकते है जो उनके और उनके हलादिनी शक्ति श्री परम पुज्य वृषभान दुलारी राधारानी के मध्य अनंत से अनंत तक रहा है।
इस गद्यांश से हम उस प्रेम को जानेंगे जो हमारे जीवन का सार है ।

"बुलावे कोई तोहे कान्हा ,तो कोई बुलावे द्वारकाधीश, अखियन में अंसुवन बहे तब जब प्यारी बुलावे तोहे केशव ,वृन्दावनेश्वर ,उनके एक मात्र ईश।"

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