परिकल्पना ❤

89 13 19
                                    

"तू लौटेगा या नहीं,
मुझे नहीं इसका ज्ञान सांवरे,
तेरी कल्पना की परिकल्पना का छोटा सा अंश हूं,
बस सोच यही मन झूम उठे,तू प्रिय मेरा बांवरे।"

कल्पना ,ये शब्द कुछ भिन्न है ।क्या विचार आते है आपके हृदय में ये शब्द को सुनने से ।
मेरा ये अनुमान है कि कुछ लोग अपने स्वप्न की कल्पना करते है ,कुछ लोग अपने प्रिय जन की कल्पना करते ,कुछ लोग अपने शिल्पकारी के लिए कल्पना करते है और कुछ लोग अपने आशा ,आशा आकांक्षाओं की कल्पना करते है ।
अब ,आप सोचेंगे की ये कैसा विचार है ,कल्पना और कृष्णप्रेम इन दोनों में क्या संबंध है ?

संबंध , संबंध है । हर कृष्णप्रेमी के मन की कल्पना सिर्फ वो सांवरा है ,वहीं कमल नयन ,वहीं हृदय मुग्ध मुस्कान ,वहीं भावपूर्ण मोरपंख और वहीं सर्वस्वसत्य अर्थ में कृष्ण हमारा वो वास्तविक पूर्ण परिकल्पना है जो हम हर दिन जीते है।
देखा जाए तो इस धरा पर सब कुछ केवल एक भ्रम प्रतीत होगा ।
आज कोई होगा ,कल कोई नहीं होगा,किसे क्या पता ,किन्तु हां इतना अवश्य है इस भ्रम के भंवर जाल में यदि कोई सत्य का प्रकाश दृष्टि में आता है तो वो केवल कृष्ण नाम है ,और कुछ नहीं।

"माया जाल में बंधा ,ये शरीर मेरा मोहन,कैसे मुक्ति मैं पायूं,
बस हर पल तेरा नाम सुमिरन हो कुछ ऐसी ही युक्ति लगायूं।"

"माया जाल में बंधा ,ये शरीर मेरा मोहन,कैसे मुक्ति मैं पायूं,बस हर पल तेरा नाम सुमिरन हो कुछ ऐसी ही युक्ति लगायूं।"

ओह! यह छवि हमारे सामग्री दिशानिर्देशों का पालन नहीं करती है। प्रकाशन जारी रखने के लिए, कृपया इसे हटा दें या कोई भिन्न छवि अपलोड करें।
अंतर्मन का दर्पण |  ✓ जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें