अनुभूति ❤

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"प्रीत लगन की लय है,
हृदय की निश्तेज सी है गति,
मनोहर!क्यों फिर भी मुझे,
प्रतिदिन तेरे समीप होने की होती है अनुभूति।"

प्रतीक्षा ,परीक्षा , सैयम , धैर्य ये सब शब्द सुनते ही एक नकारात्मकता का विचार मन में उत्पन्न होता है। कदाचित,ये स्वाभाविक भी है किन्तु क्या कभी ये विचार करके देखा है कि ऐसा क्यों होता है? इसका क्या कारण है?
ईश्वर,परमात्मा कौन है ,कहां है , इन प्रश्नों के उत्तर की खोज तो सब करते है किन्तु क्या क्या कभी किसी ने बिना किसी शर्त के उनपर विश्वास करना सीखा है ।
सैयम,धैर्य ,प्रतीक्षा ,परीक्षा जब तक इन कसौतियों पर आप खड़े नहीं उतरेंगे ,आपको ईश्वर के दर्शन प्राप्त नहीं हो सकते ।
अब आप पूछेंगे कि तब क्या हम अनंत तक उनके दर्शन की प्रतीक्षा करते है, परीक्षाएं देते रहें?
मित्रों ,कुछ आशा ही नहीं होती जब आपके साथ उस परब्रह्म की अनुभूति होती है,
अनुभूति ये कि वे हर क्षण मेरे साथ है,अनुभूति ये कि वो बंसी बजाए या नहीं प्रेम धुन कानों में गूंजती रहे,अनुभूति ये कि सब नकारात्मक के मध्य भी कुछ सकारात्मकता शेष है।

"न पाने की चाह ,न खोने का भय है ,मेरे जीवन की केवल कृष्ण नाम ही लय है ❣️"

अनुभूति अपने अंतस का वो भाव जो हमें प्रतिपल आशा की किरण देता है । अनुभूति वो जो उसके होने का आभास करवाए।अनुभूति ये कि बस उसके मोर पंख में ही उसका प्रतिबिंब दिखे ,अनुभूति ये कि कभी न कभी वो आएगा और दर्शन देगा।यदि बांसुरी, मोर पंख ,पीताम्बर इन सब मे...

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अनुभूति अपने अंतस का वो भाव जो हमें प्रतिपल आशा की किरण देता है । अनुभूति वो जो उसके होने का आभास करवाए
अनुभूति ये कि बस उसके मोर पंख में ही उसका प्रतिबिंब दिखे ,अनुभूति ये कि कभी न कभी वो आएगा और दर्शन देगा।
यदि बांसुरी, मोर पंख ,पीताम्बर इन सब में कृष्ण नाम की अनुभूति न हो तो ये सब निश्तेज से प्रतिर होंगे किन्तु यदि कोई एक बार इन सभी वस्तुएं को हरि से जोड़ दे ,तो ये किसी जीवित मनुष्य से भी अधिक भाव प्रत्यक्ष करती हुई प्रतीत होती है। जीवन बहुत सूक्ष्म है और नश्वर भी ।अपने अनेक समस्याओं के मध्य कभी कभी आस पास का पर्यावण भी आपके विपरीत चला जाता है ।नकारात्मक बातें सुन सुन के हृदय सकारात्मक भाव को भूलने की कगार पर होता है किन्तु यदि हृदय में वो मोर मुकुट धारी बसा है उसे न सकारात्मक की चिंता होती ही और न ही नकारात्मक है । उनके जीवन का हर क्षण केवल कृष्ण सेवा में ही बीत जाता है।
निर्णय आपको लेना है कि कोनसा जीवन व्यतीत करना अधिक उपयोगी है।
मृत्यु का भय तो हर क्षण रहता है किन्तु ये अनुभूति केवल पारिशुध प्रेम से ही संभव है।

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