सुकून

21 3 0
                                    

रीमा के कदम अपने घर की ओर तेज़ी से बढ़ रहे थे। उसके मन में बस यही ख्याल था कि आज क्या होगा। वोही कल वाला खेल दोहराया जाएगा या परसों वाली ज़बरदस्ती या फिर चार दिन पहले वाला सन्नाटे का खोफ। धीरे धीरे वो मोड़ वाला बिजली का खंबा नज़दीक़  आ रहा था और उसकी दिल की धड़कने बढ़ रही थी। उसने अपने दुपट्टे के एक कोने को कस कर पकड़ा, दूसरे हाथ से अपने दफ्तर के बैग को और पूरी हिम्मत जुटा कर नज़रें उठा कर बिजली के खंबे की ओर देखा। उसे वोही देखने को मिला जो उसे पिछले डेढ़ महीने से देखने  को मिल रहा था, फटे पुराने कपड़ों में, एक हाथ में बीड़ी दूसरा हाथ दीवार पर सहारे के लिए टिकाए हुए खड़ा वो शराबी। रीमा के पैर एक क्षण के लिए रुके, उसने लंबी सांस ली, नज़रें झुकाए और बेबस होकर अपने घर की ओर बढ़ने लगी। वह जानती थी  की हर रोज़ की तरह आज भी कुछ गलत होगा, आज भी कुछ हदें पार की जाएंगी जोकि उसके अंदर गुस्सा, आक्रोश, घीन, दुख, बेबसी पैदा करेंगी। उसने वह बिजली का खंबा पार किया और अपने पीछे उन्हीं लड़खड़ाते क़दमों की आवाज़ सुनी। रीमा के हाथ काप रहे थे, उसकी आंखों में आंसू थे, वह थक चुकी थी। अचानक पीछे से उसकी कलाई पकड़ी गई और उसे खीचा गया। वह मुड़ी और उस शराबी की आंखों में देखा। उन आंखों में सिर्फ उसे हवस और नशा दिखाई  दे रहा था। रीमा ने अपनी कलाई उन गंदे हाथों में से छुड़ाने की कोशिश की, अब तक जो आंसू उसकी आंखों में सुरक्षित थे अब वो उसके चेहरे पर बेह रहे थे। रीमा को बेबस, लाचार, बिलखते हुए देख कर उस शराबी के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी। उस शराबी ने अपने होठों के बीच में से बीड़ी हटाई और रीमा की सफेद कलाई पर रगड़ दी। रीमा के मुंह से चीख नहीं निकली बल्कि उसके अंदर दबे गुस्से, आक्रोश, घीण को उस बीड़ी से चिंगारी मिली। उसने अपने दूसरे हाथ से कस कर उस शराबी को थपड मारा। अब रीमा अपने आपे में नहीं थी,बहुत हदें पार हो गई थी लेकिन अब और नहीं। शराबी चौंक गया, उसने रीमा की कलाई छोड़ी और इससे पहले वो कुछ कर पाता, रीमा ने उसे धक्का दिया। वह लड़खड़ाते हुए धम से नीचे गिरा। रीमा कि आंखों के सामने पीछले डेढ़ महीने में हुए हर वो गलत खेल नज़र आया जो यह शराबी उसके साथ खेलता था। रीमा ने अपने बैग में से चाबियों का गुच्छा निकाला, नीचे झुकी, अपनी उंगलियों के बीच एक चाबी ली और घोप दी उस शराबी  की आंखों में। शराबी ज़ोर से चिलाया। उसकी आंखों में अब नशा और हवस नहीं बल्कि खून बेह रहा था। रीमा उठी, अपने दुपट्टे से अपने हाथ और चेहरा साफ किया, खून से सना चाबियों का गुच्छा अपने बैग में डाला और उस बिलखते चीखते शराबी को वहीं सड़क पर छोड़ कर अपने घर  की ओर बढ़ी। जैसे जैसे वह अपने घर के करीब आ रही थी वैसे वैसे उस शराबी  की चीखें धीमी हो रही थी। रीमा के अंदर एक अलग सी शांति थी, उसका दिल सुकून से धड़क रहा था, उसके अंदर अब डर, गुस्सा ,आक्रोश,घीं नहीं थी पर सिर्फ सुकून था। वह घर पहुंची, खून  से सनी चाबी से घर का ताला खोला, कपड़े बदले, मुंह- हाथ धोए, शीशे में खुद को देखा और मुस्कुराई।

रीमा अगली सुबह उठी और सब्ज़ी वाले कि आवाज़ सुन कर घर से बाहर निकली।
"अरे वाह रीमा आज तो बड़ी खिल रही हो, क्या बात है" रीमा की पड़ोसन ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही" रीमा ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"अरे पता है वो जो शराबी था ना, जो बिजली के खंबे के नीचे खड़ा रहता था। आज सुबह उसे लोगों ने मारा हुआ पाया, उसकी आंखें फोड़ रखी थी किसी ने। उसके बीवी बच्चे भी थे। बताओ क्यूं किया किसी ने उसके साथ ऐसा, एक तो शराबी था, उसे रहने देते उसके हाल पर, कम से कम उसके बच्चों पर बाप का साया तो था।"
रीमा के हाथ पैर ठंडे पड़ गए और वह अपनी सब्जियां छोड़ कर अंदर भागी।  अब कल रात की उसके अंदर की शांति एक खौफनाक सन्नाटे में बदल चुकी थी। वह शीशे के सामने जाकर खड़ी हुई और उसने अपना चेहरा खोजने की कोशिश की लेकिन शीशे में सिर्फ उसे उस शराबी का चेहरा नज़र आ रहा था, आंखों से भेहता खून, काले होठ, बेजान चर्बी। रीमा ने अपनी उंगलियां अपने चेहरे  पर फहराई और कुछ गीला महसूस किया, उसने अपनी उंगलियां देखी तो लाल खून नहीं बल्कि बेरंग आंसू पाए। पूरा दिन वो बेजान मछली कि तरह फर्ष पर पड़ी रही, उसके दिमाग में वो बीता डेढ़ महीना और अपनी पड़ोसन की बातें चल रही थी। अब सांसें लेना सबसे मुश्किल काम लग रहा था। उसकी नज़र सामने टेबल पर पड़े चाबी के गुच्छे पर पड़ी। पूरी हिम्मत के साथ अपने शरीर को फर्श पर से उठाया, टेबल कि ओर बढ़ी, हाथ में चाबियों  का गुच्छा लिया, शीशे के सामने जाकर खड़ी हुई और अपने घर  चाबी से अपनी सीधी आंख घोप दी। रीमा के मुंह से कल रात की तरह चीख नहीं निकली। उसने अपनी दूसरी आंख खोली और ख़ुद  को देख कर मुस्कुराई। अब वह वापस से वोही शांति महसूस कर रही थी, वोही सुकून।

Created on :- 17 sep 2019

अनुभूतियां -- PerceptionsWhere stories live. Discover now