छोटा सा शहर

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एक छोटा सा शहर ऋषिकेश जो अपने आप में एक इतिहास समेटे है । शांत गंगा नदी के तट पर बसा छोटा सा एक प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर नगर । जहाँ पर लोग पूजा पाठ , दान पूण्य कर के एक सीधा सा जीवन जीते हैं वही पर रहता था विद्याचंद्र जी का परिवार छोटा पर सुखी विद्याचंद्र जी एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क , उनकी पत्नी रमा सरकारी स्कुल में प्रधियापिका बेटा और बेटी से भरपूर । पत्नी आदर्श विचारो की महिला और संस्कार से भरपूर परिवार ।

विधा ....अरे ओ रमा सुबह की चाय तो साथ पिया करो ।

रमा ( अंदर से जबाब देती है ) अजी सुबह सुबह आपके साथ चाय पीने लगूँ तो काम कैसे होगा , स्कुल भी जाना होता है आप तो जानते हो ।

विद्या - अरे भाग्यवान कुछ वख़्त इस नाचीज़ के लिए भी निकाल लिया कर ( और मुस्कराने लगते हैं )
रमा - हाथ में चाय का पियाला ) आप भी न कभी कभी बिल्कुल बच्चे बन जाते हो ।
राधिका -- माँ कितने बज गए है? ( राधिका आँखों को मलते हुए आती है ) माँ आज तो देर हो गई मुझे तो स्कुल जल्दी पहुँचना था ।
रमा - क्यों कुछ ख़ास है क्या ?
राधिका --हां , माँ आज से 15 अगस्त की तैयारी शुरू हो रही है और आप तो जानती हो जहाँ राधिका नहीं वहाँ कुछ नहीं
( और शरारती बच्चों की तरह हंसने लगती है )

रमा--( राधिका की इस हरकत पर मुस्कराती है ) अच्छा अब जल्दी तैयार हो , मैं नाश्ता लगाती हूँ इतनी बड़ी हो गई पर बच्चपना नहीं गया ।
राधिका ( तैयार होते हुए गुनगुनाती है ) चाँद सितारों से हम उसकी मांग सजाएंगे दुल्हन सा प्यारा देश बनाएँगे ।
और इस तरह विद्या चंद्र जी के घर की सुबह एक प्यार भरी नोक झोक से शुरू होती है ।

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