दृश्य 5

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राधिका --नए घर में प्रवेश , चारो तरफ लोग कोई राधिका को बहु तो कोई चाची , कोई भाभी ,कोई मामी नामों से सम्बोधित कर रहा था और राधिका नज़ारे झुकाए सब का अभिवादन करती है
शीला -- बहु यह हैं तुम्हारी दादी सास पैर छु कर आशीर्वाद लो हमारे घरो में बड़ो को भगवान् माँना जाता है । वो जो कह दे उनके आगे मुह मत खोलना यही रीत है ।
राधिका -- दादी सास के पैर छूती है और शीला की बात पर हामी में सर हिलाती है ।
शीला -- राधिका ) बहु अब तुमको इस घर के कायदे कानून के हिसाब से चलना पड़ेगा । अपने मायके के कायदों को छोड़ना पड़ेगा । देखो भई हमारे यहाँ न तो बहुएं सर से पल्ला उतारती हैं और न बड़ो के बीच बैठती हैं । और न उन्हें बाहर जाने की इजाजत है ।
राधिका --( मन ही मन एक आनजाने डर को महसूस करने लगती है ) जी माजी जैसा आप कहेंगी ।
सौरभ ( बहुत कम बोलने वाला ) देखो राधिका हमारे घर की परम्पराएँ हैं जो अब तुमको निभानी हैं । मेरी माँ जो कहे वो तुमको मानना ही होगा और निभाना भी । और हां मेरी जिंदगी में सबसे पहले मेरी माँ है यहबात पहले ही कह दूँ अपनी हद कभी पार मत करना ।
राधिका -- वो तो ठीक है पर मेरे अपने भी तो कुछ सपने हैं । क्या मैं सबको निभाते हुए उनको भी पूरा कर सकती हूँ ।
सौरभ --देखो अब तुम्हे अपने सपने अपनी खुशियां सब वह परिवार में ढूंढनी होगी । बाहर की दुनिया से तालमेल मत बैठाना यही सबके लिए ठीक होगा ।
राधिका -- पर सौरभ आप तो जानते हैं मैं एक पढ़ी लिखी लड़की हूँ । चार पैसे कमाउंगी तो घर के काम आएँगे और फिर मैं बहुत कुछ करना चाहती हूँ । मैं सिर्फ घर तक सिमित नहीं रहना चाहती ।
सौरभ -- राधिका साफ़ साफ़ कह देता हूँ सब बाते निकाल दो अपने दिमाग से अगर रिश्ता निभाना चाहते हो वरना तुम्हारी मर्जी।
(राधिका सौरभ की बाते सुनकर स्तब्ध रह जाती है )
शीला -- सौरभ और राधिका का वार्तालाप सुनती है ) देखो सौरभ मैं तुम्हे पहले ही कह दूँ औरत पैर की जुती होती है जितना सर चढ़ाओगे उतना सर चढ़ कर बोलेगी । लगाम कस कर रखो ।
राधिका -- माँ आप औरत हो कर एक औरत के लिए ऐसा सोचती हो ।
शीला -- अरे मैं सच्चाई कह रही हूँ । मुझे सिखाने की कोशिश भी मत करना ।
सौरभ -- मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता जी कह दिया बस
राधिका -- अपने कमरे में आकर सुबकने लगती है । और सोचती है आज ऐसे दो राहे पर हूँ जहाँ समझोते की राह ही समझ आती है और इसी में सब की भलाई । क्या करूँ मैं ?

सूत्रधार --- क्या राधिका इस समझौते से खुश रह पाएगी । नहीं राधिका समझौते तो करती है और रिश्तों को जी जान से निभाते हुए संस्कारो और रिवाजो को सहेजती । पर न तो मायके का विशवास जित पाती है और न ससुराल में लोगो की अपेक्षाओं को जो असीमित हैं । पुरे समर्पण के बाद खुश कर पाती है । धीरे धीरे वो खुद को बदल लेती है । उसके अंदर का चुलबुला पैन उसके चहरे की रौनक कही गुम हो जाती है बस जिन्दगी है सिर्फ जीनी है । राधिका के अंदर ही अंदर एक द्वन्द चलता रहता है कुछ करने की उसकी इच्छा जोर मारने लगाती है । एक तड़प सी उठती है क्यों उसने अपने अंदर के अस्तित्व को समाप्त कर लिया ? क्यों वो अपने अधिकारो के लिए नहीं बोली ,? क्या एक औरत होना जुर्म है क्यों उसने कोई भी अन्याय सहा ? वो चाहती तो बहुत कुछ कर सकती थी । सिर्फ अपने परिवार के लिए ही नहीं इस देश , इस समाज उन जरूरतमंदों के लिए । फिर क्यों नहीं उठाया उसने कोई कदम ? कैसे तोड़ दिए उसने उन सपनो को जो सिर्फ उसके नहीं थे ?
राधिका -- सुबह की पहली किरण के साथ उठती है आज उसको अपने अंदर वाही 17 साल पहले वाली राधिका नजर आ रही थी जो ख़ुशी से चहकती रहती थी जिसके चहरे पर हमेशा दृढ़ निश्चय का तेज रहता था । बड़े प्यार से आईने के आगे अपने आपको बहुत देर तक निहारती है और गाना गुनगुनाती है कांटो से खिंच कर यह आँचल तोड़ कर बंधन बाधी पायल
सौरभ --- क्या बात राधिका कोई ख़ास बात बहुत खुश नजर आ रही हो ।
राधिका --- एक दृढ़ निश्चय से बोलती है मुझेतुम से कुछ बात करनी है ।
सौरभ -- हाँ बोलो , पर जरा जल्दी मुझे देर हो रही है।
राधिका -- सौरभ बात आराम से करने की है जरा देर से चले जाना ।
सौरभ -- झल्लाकर पागल हो क्या ? तुम्हे क्या पता पैसे कमाना कितना मुश्किल है । बाहर निकल के पैसे कमाने पड़े तो पता चले तुम्हे ।
राधिका -- वही तो जानना चाहती हूँ और आज मैं तुमसे पूछ रही हूँ । मैंने अपने पैरो पर खड़े होने की ठान ली है । अब मैं किसी की नहीं सुनूंगी । अब चाहे मुझे उसके लिए कोई भी कुर्बानी देनी पड़े ।
सौरभ --लगभग चिल्ला कर तुम्हारा दिमाग खराब नहीं । अब इस उम्र में नौकरी ।मेरे घर के रीती रिवाज़ को ताक पर रखोगी । लोगो के सामने मुझे नीचा दिखाओगी अरे कोई नहीं पुछैगा तुम्हे एक दिन धक्के खा कर आ जाएगी

राधिका --एक फीकी सी मुस्कान के साथ सौरभ 17 साल तुम्हे देने के बाद भी तुम धक्के मार कर घर से निकाल देने की धमकी देते हो । मैं एक बार अपने सपनो को जी कर देखना चाहती हूँ । जीत गई तो खुश हो लुंगी । देर से सही अपने सपनो को अकार तो दे सकी हार गई तो मेरे अंदर की तड़प मिट जाएगी की क्यों मैं ने अपने सपनो से न्याय नहीं किया ।

मनीषा

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