दृश्य 2

73 2 0
                                    

राधिका - गुड़ मार्निग मैंम ।
टीचर -- गुडमार्निंग राधिका , अरे हां राधिका आज स्कुल के कार्यक्रम के लिए चयन प्रक्रियाएं शुरू करनी है । इसलिए प्रार्थना सभा में सब को सूचित कर देना ।
राधिका - जी मैम ।

( प्रार्थना सभा का दृश्य )

राधिका स्टेज पर आकर बिद्यार्थियों को सूचित करती है । प्रिय साथियों जैसा की आप सब लोग जानते हो 15 अगस्त के उपलक्ष्य में हमारे विद्यालय में रंगा रंग कार्यक्रम होते है परन्तु इस बार कुछ अच्छे कार्यक्रमों का चयन देहरादून में होने वाली प्रतियोगिताओं के लिए होगा अतः आप में से जो विद्यार्थी भाग लेना चाहते है वो स्कुल समाप्ति के बाद हाल में एकत्रित हो जाए ।

सूत्रधार -- देवियो और सज्जनों राधिका -- एक किरदार जो स्कुल से लेकर कालेज तक विद्यार्थायों और टीचर के लिए एक अहम् भूमिका रखता है सबको उससे बहुत उम्मीद हैं ।

विद्या चंद्र उनके लिए तो राधिका उनका अस्तित्व है जिसमें वो अपने सपनों को पूरा करने का इन्तजार करते हैं ।
विद्या चंद्र जी जहाँ पिता और पुत्री हैं वहीँ वो दोनों एक दूसरे से हर मुद्दे पर खुल कर बहस करते हैं ।

विद्या चंद्र -- बेटा , कांग्रेस सरकार के राज्य में बहुत विकास हुआ है , बाकी सरकार तो आती जाती रहती हैं पर यह एक स्थिर सरकार है ।

राधिका -- पापा सरकार चाहे किसी की हो बात तो तब है जब राष्ट्र के हित में कार्य करे गरीब लोंगो के विकास के बारे में सोचे । पर आज हर नेता सिर्फ अपनी कुर्सी को सुरक्षित करने में लगा है ।
विद्या चंद्र -- नहीं बेटा ऐसा बिलकुल नहीं है , कुछ लोग बुरे होते हैं पर सब नहीं ।
रमा -- आप दोनों हर वख़्त एक मुद्दे पर बहस क्यों करते हो आप लोगों के पास कोई काम नहीं

राधिका -- माँ तुम नहीं समझोगी क्योंकि तुमने अपनी दुनिया अपने परिवार और स्कुल के बच्चों तक सिमित कर ली है पर माँ मैं बहुत कुछ करना चाहती हूँ । देश के लोगों , समाज की कुरीतियों ,अपने अंदर के कलाकार को पहचान दिलाने के लिए माँ मैं आपकी तरह अपनी दुनिया सिमित नहीं करना चाहती हूँ ।

विद्या चंद्र -- बिलकुल मेरी बेटी एक दिन बहुत नाम कमाएँगी और मैं फख्र से कहूँगा मैं राधिका का पिता हूँ ।
रमा -- बस तुम भी इसी की बढ़ावा देते रहो पर बेटी लड़की को शादी करके दूसरे घर जाना है और वहाँ पर उन्ही के हिसाब से खुद को ढालना पड़ता है ।
राधिका --उफ़ माँ तुम भी न , मैं सब कुछ समझती हूँ , पर क्या एक लड़की का अपना कोई अस्तित्व नहीं अरे घर परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए वो बहुत कुछ कर सकती है ।
रमा -- देखो राधिका मैं सिर्फ इतना जानती हूँ की सपने टूटने का दुःख इंसान को तोड़ देता है और मैं यह नहीं चाहती ।

राधिका--पापा आज मैं आप और माँ दोनों के लिए चाय बना कर लाती हूँ आप भी क्या याद करोगे राधिका स्पेशल चाय ।

सूत्रधार ......समय का चक्र यूँही चलता जाएगा
हर चक्र के बाद कुछ नया नज़र आएगा , समय का चक्र या तो तोड़ेगा या तोड़ जाएगा या फिर एक नई सुबह लाएगा

खुवाहिशे रखना इंसान का हक़ है वो पूरी होगी की नहीं यह नहीं कहा जा सकता । परन्तु हार कर बैठना इंसान फितरत के विरुद्ध है ।

जिंदगी कैसी है पहेली (नाटक )जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें