राधिका -- माँ मैं चलती हूँ कालेज को देर हो रही है । और आज मुझे कालेज से ही पेंटिंग और टाइपिंग क्लास भी जाना है देर हो जाएगी । चिंता मत करना ।
रमा --ध्यान से जाना ( रमा सोचने लगती है आज जमाना बहुत बदल गया है पता न्हिबिस्के नसीब में क्या लिखा है माँ के चहरे की चिंता साफ़ दिखाई देती है ) हे भगवान् मेरी बेटी को उसके लक्ष्य में कामयाब करना ।
राधिका --( शाम को घर आने के बाद ) पापा आज हमारे कालेज में एक नोटिस आया है कालेज की तरफ से एक टीम इलाहाबाद जानी है जिसका वहां और कॉलेजों से मुक़ाबला होगा मेरा भी उसमे नाम है अगर आप हां करोगे तो मैं भी चली जाउंगी ।
विद्या चंद्र -- यह तो बहुत ख़ुशी की बात है अलग अलग जगह के लोगों से मिल कर ही हमें हमारी संस्कृति की पहचान होती है ।
राधिका -- पापा बुधवार को जाना है दोपहर 2 बजे की ट्रेन है हरिद्वार से ।
विद्या चन्द्र --दो दिन बाद तुम अच्छे से पैकिंग कर लो और किसी चीज की जरूरत हो तो लिस्ट बना दो मैं लेता आऊंगा ।
दो दिन बाद
विद्या चंद्र --बेटा तू तैयार है टाइम हो गया
राधिका -- बस 2 मिनट पापा
रमा -- राधिका अपना सारा समान देख लिये न कुछ छूटा तो नहीं ।
राधिका -- नहीं माँ
सूत्रधार ---राधिका निकल पड़ती है अपने गन्तव्य की और । पर पीछे से एक दिन अचानक
विद्या चंद्र -- अरे राधिका की माँ कहा हो तुम जल्दी बाहर आओ । तुमसे जरूरी बात करनी है
रमा --- आती हूँ बौखला क्यों रहे हो ।
विद्या चंद्र --तुम अपनी राधिका के हाथ पिले करना चाहती थी न , तो देखो उसके लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है । उन्होंने अपनी राधिका को देखा है और वो उनको बहूत पसंद है बस राधिका से और पूछ ले वो अभी पढ़ना चाहती है
रमा -- अजी उससे क्या पूछना शादी की उम्र है और रही पढ़ने की बात तो ससुराल वालो को नौकरी करवानी होगी तो खुद पढ़ा लेंगे । भगवान् ने सही वख़्त पर सुन ली बस बात बने तो गंगा नाहा लूँ ।
सूत्रधार ---क्यों हर बार औरत की बाली संस्कारो के नाम पर दी जाती है ? क्यों औरत का कोई अस्तित्व नहीं ? क्यों वो सब की इच्छाओ के आगे झुक जाती है । यह कैसी बिडम्बना है हमारे समाज की एक और लड़कियां पढ़ लिख कर आगे बढ़ना चाहती है वही घरवाले शादी कर के अपनी जिम्मेद्दारिओ से मुक्त होना चाहते हैं ।
क्यों कोई उनकी भावनाओ को नहीं समझता ?
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जिंदगी कैसी है पहेली (नाटक )
Randomप्रस्तावना यह नाटक हमारे समाज में जब एक बेटी का जन्म होता है तब से लेकर अपनी पूरी जिंदगी के सफ़र में वो किस तरह अपने सपनो का त्याग अपने परिवार के लिए करती है । पर कहीं न कहीं उसके सपने उसे एहसास दिलाते है की उसका भी अपना कोई अस्तित्व है , अपने प्रति...