नोकरी करते हुऐ 2 महीना गुजर चुका था। लाइफ सही कट रही थी। मेरे दोस्तों को खाना बनाना आता था। बर्तन धोने ओर कमरा साफ करने की मेरी जिम्मेदारी थी। कभी कभी चिकेन भी बना लेते थे और तब दारू भी पी लेते थे। उस समय अपना ब्रांड अरेस्टॉक्रेट प्रीमियम होता था। अब चुकी खर्च तीन लोगो मै डेवाइड होता था तो जायदा नहीं आता था। मकान मालिक को भी दारू ओर चिकन का शौक था पर दारू वो छुप कर पीता था। इसलिए जिस दिन चिकन बनाना होता था वो बोलता था किताब पढ़नी है मिल जाएगी क्या। तो हम समझ जाते थे। कि आज दारू का जुगाड करना है। मकान मालिक मुर्गा लेकर आता था ओर हम बोतल। खैर सब सही चल रहा था। रात की फिर शिफ्ट आने वाली थी। इसी बीच पता चला pc शर्मा ने कंप्लेन कर दी थी की लोग qc मै सोते है। उसने किसी का नाम तब तक नही बताया था।जांच सुरु हो गई ओर इसी बीच मेरी फिर नाइट शिफ्ट आ गई। उस रात मेरी शिफ्ट मै pc शर्मा, qc का महेंद्र ओर textrusing वाले शर्मा जी थे। अब चुकीं मेरी चुगली कि आदत नहीं थी तो सबसे मेरी बढ़िया अंडरस्टैंडिंग थी। pc ने कंप्लेन कर रखी थी तो qc वाले ओर texturizing वाले ने रात को उसको धमकी देने का प्लान बनाया। अब उन दिनों सर्दी के दिन थे ओर pc, extruder room में सोया करता था। वो दोनो उपर पहुंचे ओर उसको धमकाते हुए पीपी चिप्स के हापर की छत पर ले गए। अब pc बहुत छोटे कद का था ओर सब उसको बच्चा कहते थे। ओर एक दिन वो मुझे बोला यार बियर पीने से जायदा नशा तो नहीं होता। अगर मै बियर की एक बोतल ले आऊ ओर रोजाना एक ढक्कन पानी मिला कर पी लू तो बोतल भी कई दिन चल जाएगी ओर दारू पीने की इच्छा भी पूरी हो जाएगी। मैने कहा बहुत सही ऐसा ही कर। खेर उपर छत पर मज़ाक से सुरु हुई बात इतनी बढ़ गई कि pc ने उनको गाली दे दी ओर texterzing वाला बहुत तगड़ा ओर सॉलिड था उसने pc की टांग पकड़ कर तीसरी मंजिल से लटका दिया। इसी बीच उसकी शर्ट भी फट गई। अब बात कुछ जायदा ही बड़ गई थी इसलिए सुलह नहीं हो सकती थी ओर pc उस दिन 9,00 बजे तक रुका ओर इंस्ट्रूमेंटेशन के मैनेजर ठाकुर साब से कंप्लेन कर दी की qc के केमिस्ट ओर texterizing के सुपरवाइजर ने मेरी कमीज़ फाड़ी ओर मुज्को छत से लटकाया। ठाकुर साब ने हमारे मैनेजर को बोला। अब चुकी घटना सचमुच मै घटी थी। मुझे भी बुला कर पूछताछ हुई तो मैंने बोला मुझे पता नहीं मै तो टेक अप मै बिजी था ओर वैसे भी मैने कोई भी ग्रुपइंग नहीं कर रखी थी। ओर सब से मेरा व्हव्वार सेम था। अब दोनो को वार्निंग लेटर मिल गया। textruzing वाले सुपरवाइजर ने उसके कुछ दिन बाद जॉब छोड़ दी वैसे भी उसको रोजाना गाजियाबाद से 45 किलोमीटर आना होता था। आधी सैलरी उसकी किराए मै निकाल जाती थी।एक बार उसने मुझको बताया था कि किसी छोटे प्लांट मै वो gm भी रह चुका है ओर अपना विजिटिंग कार्ड भी दिखाया था। अब चुकी मै दूसरो की बाते ध्यान से सुनता था तो सब मुझसे अपनी बाते शेयर किया करते थे। Qc वाला मुझको बोला भोसड़ी वाला पीसी भी तो रात को सोता है और साला कंप्लेन हमारी करता है। अबकी बार तो छत से फेक देना हैं। उस समय बहुत कम लोगों की शादी हुई थी और शिफ्ट मै तो लगभग 95 परसेंट कुवारे थे। तो किसी को जॉब छोड़ने का दुख़ भी नहीं था सब रॉब मै ही रहते थे। साब लोग ओर सीनियर्स को छोड़ कर सबकी पहली या दूसरी जॉब थी।
Texturizing के लिए दूसरे सुपरवाइजर की तलाश सुरु हो गई और जल्दी ही दो लोग मिल गए। तब तक texturizing के मैनेजर भी जॉब छोड़ चुके थे। उनके मुझ को कहें कुछ शब्द याद है कि राजीव किसी भी प्लांट मै 3 साल से जायदा जॉब नहीं करना इससे प्लांट मै ऑपरेटर ओर मैनेजमेंट मै इज्जत बनी रहती है नहीं तो सबको लगने लगता है कि ये तो इधर ही रिटायर होगा। उस समय जिंदल pp की हालत खराब चल रही थी और वो लोग जॉब छोड़ रहे थे। उधर से दो लोगो ने ज्वाइन कर लिया अब हुआ कि उनमें से एक मैरी बिरादरी का था तो दोनों से आपना बढ़िया गठजोड़ हो गया। अब उनमें से एक जनरल शिफ्ट मै आता था और दूसरा शिफ्टों मै आने लगा। हमारे टेक्सचराइजिंग डिपार्टमेंट मै एसडीएस 300 मशीन थी। मैने उनके पैरामेटर सीखना सुरु कर दिया। एक दिन जब मै शिफ्ट B मै आया तो देखा कुछ लोग poy के पास फोटो ले रहे है, पता चला the time's of india न्यूज पेपर से आये है ओर अगले दिन पेपर मै अपने प्लांट के बारे में छप गया। अपना प्लांट वैसे भी बहुत सुर्ख़ियो मै रहता था क्योंकि वो चंद्रा साब ने लगवाया था जोकि jk में प्रोजेक्ट इंचार्ज रह चुके थे उपर से पाइप डिजाइनिंग आईआईटी वाले बंदे ने की थी। हालाकि आईआईटी वाला बंदा पागल के नाम से मशहूर था और प्लांट लगने के बाद यानी प्रोडक्शन सुरु होने के बाद उसकी वल्यू ज़ीरो हो गई थी। प्रोडक्शन वाले भाई लोग जानते होगे कि प्रोडक्शन मै जो गधे की तरह काम करे उसकी ही तारीफ होती है दिमाग वालो को कोई जायदा पसंद नहीं करता ओर वैसे भी देखा होगा बॉस आर्गुमेंट पसंद नहीं करता चाहे उसने सही बोला या गलत बोला। बस काम होना चाहिए। इस तरह कुछ दिन ओर गुजर गए। मेरे दोस्त लोग भी गाजियाबाद शिफ्ट हो गए थे। अब मै अकेला था। उनका सन्डे को ऑफ रहता था। तो सैटरडे को, वो गाड़ी ले कर रात 10,00 बजे मेरे प्लांट मै आ जाते थे। ओर मै रात को उनके साथ गाजियाबाद निकाल जाता था और अपना ऑफ किसी के साथ चेंज करवा लेता था । शिफ्ट मै आने का ये भी फ़ायदा है की ऑफ ओर शिफ्ट एडजस्ट करलो।
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कारखाना 24
מתח / מותחןये कहानी है, 24 घंटे चलने वाले कारखानों के स्टाफ और वर्कर्स की पॉल्टिक्स की