विष तो पीना ही होगा

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आज भूलोक भय से भयभीत है

जहरीली हवाओं में साँस लेने को बाध्य हैं

मृत्यु के कगार पर खड़ा है आज मानव

मृत्यु तो जैसे अठखेलियाँ खेल रही है

जीवन के साथ ।

सिहर- सिहर कर डर- डर कर जीवन

को जी रहा है मानव आज

लगता है जैसे पाताल लोक में रहने

वाले नागराज वासुकि के सहस्त्र फणों से निकला विष

डस ही लेगा सम्पूर्ण संसार को ।

जाना ही होगा देवलोक की शरण में

विष का विषपान करने वाले देवों के देव

नीलकंठ महादेव की अर्चना करनी होगी

विष तो पीना ही होगा ।

किन्तु

प्रभाव कम हो जाये इसलिए

भूल का परिमार्जन करना होगा

भुगतना तो होगा ही दंड

पेड़ पौधों में बसे देवताओं के अपमान का

उनकी रक्षा न करने की सजा तो

भुगतनी ही होगी ।

अगर पाना चाहते हो अमृत ईश्वर की करुणा का

तो करो परिमार्जन भूल का

         - by Shashi Jain

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