"कुमार..! ठहरिए.. "
लव ने पीछे मुड़कर कहा," नहीं। यदि मैं रुका तो तुम अवश्य ही मुझे दंड दोगी।"
राजकुमार लव किसी की परवाह न करते हुए भरे बाजार में आते जाते लोगों के बीच दौड़ रहे थे और मीरा उसके पीछे दौड़ रही थी ।
" कुमार ! कुमार ! ठहरिये ! "
"हा हा हा हा ... क्या तुम इतने शीघ्र ही थक गई ? "दोनों को इस प्रकार अपनी ओर आते देख लोग भय के कारण उनके मार्ग से हट जाते ।
"मीरा,तुम चाहे कुछ भी क्यों ना कर लो परंतु तुम मुझे कभी- आह!!!"
"कुमार, समक्ष--", मीरा चेतावनी देते हुए बोल पड़ी ।
किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 'कुमार' तो पहले ही किसी से जा भिड़े । भय से पलकें बंद हो गईं। लव को लगा कि अब वे इस भरे बाजार में सभी की दृष्टि के समक्ष नीचे गिरेंगे । 'ओह, कितनी लज्जा की बात है।'
लव ऐसा सोच ही रहे थे कि किसी ने 'राजकुमार' लव का हाथ पकड़कर उन्हें अपनी ओर खींचा और एकाएक लव की आँखें खुल गईं ।
उसे अपनी आँखों के समक्ष इतने 'मनमोहक नयन' दिखे कि वह अपने स्थान पर स्थिर रह गया । ये आँखें मानो पिघलते हिम से बनी, किसी बहते झरने की भाँति स्वच्छ,सुंदर,और मोहक ।
रेशम से बालों की कुछ लटों ने इन 'अलौकिक' नैनों के समक्ष आकर लव को इस सागर में और गहरा डूबने से बचा लिया ।
यह आँखें उसे एकटक देखे जा रही थीं। दोनों के मुख हल्की-सी दूरी पर। उसकी सांसें रुक गईं और हृदय विचलित हो उठा ।
उसने अपनी कलाई को छुड़ाया और दोनों हाथों से सामने खड़े व्यक्ति को धक्का दे दिया । सामने खड़ा युवक भी संभवतः होश में न था शायद इसीलिए वह भी बड़ी कठिनाई से स्वयं को सँभाल सका।
यह युवक साधारण न दिख रहा था । उसे देखकर लगता था जैसे किसी समृद्ध परिवार से हो । उज्ज्वल कांति तथा बाल काले व रेशमी थे। ये देखा जा सकता था क्योंकि उसके बाल खुले थे । उसने विशेष प्रकार के आभूषण धारण किए थे जो संभवतः विदेशी शैली के थे । वह सिर से पैरों तक आभूषणों से सुसज्जित था । लव ने सोचा की इतने आभूषण तो कदाचित स्त्रियां भी न धारण करती होंगी । वह युवक ऊंचाई में लव से भी कुछ अधिक था । उसका शरीर पतला था, परंतु वह किसी भी प्रकार से दुर्बल न दिख रहा था।
पीछे कुछ दूरी से एक व्यक्ति दौड़ता-दौड़ता युवक के निकट आ खड़ा हुआ ।।दोनों एक ही आयु के लग रहे थे । ठहरते ही कुछ क्षण वह हाँफता रहा जैसे बहुत दूर से इस प्रकार दौड़ते हुए आया हो । किंतु युवक को की ओर स्पष्ट रूप से देखते ही दूसरा युवक घबराकर बोला," कुमार, यह चोट आपको कैसे लगी ?" पहला युवक कुछ न बोला केवल सिर हिलाकर अपना हाथ आगे बढ़ाया और दूसरे युवक ने मुख पर चिंतित भाव लिए एक छोटा-सा वस्त्र निकालकर उसके हाथ में रख दिया । युवक ने कपड़े से अपने होठ से निकलते रक्त को स्वच्छ किया और हल्का-सा मुस्कुराकर लव की ओर देखा व कहा," आप कुशल तो हैं न?"
लव को समझ न आया कि वह उत्तर दे तो कैसे दे। उसे अपनी ही मूर्खता पर लज्जा आ रही थी । वह अपने समक्ष खड़े व्यक्ति से दृष्टि न मिला पा रहा था ।
कभी नीचे तो कभी इधर-उधर देखते हुए उसने कहा," हाँ ... हाँ, मैं--मैं कुशल हूँ। मैं- मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं देखे बिना ही चल--चल रहा था और मेरे ही कारण आपको यह चोट लग गई...।"
"मैं क्षमा माँगता हूँ ।" युवक की ओर देखते हुए लव ने कहा । लव की आँखों को देखते युवक ने अपनी दृष्टि झुका ली। फिर अधर पर स्मित लाते हुए कहा,"आप भला क्षमा क्यों माँग रहे हैं। मैं भी आपको देख न सका। इसलिए..,आप मुझे क्षमा कर दें।"
"और,यह-यह मुरली क्या-। क्या आप इसके स्वामी हैं?" उस युवक ने सुंदरता से झुककर भूमि पर से कुछ उठाया। एक श्वेत मुरली लेकर दोनों हाथों को लव की ओर बढ़ाते हुए कहा,"कुछ समय पूर्व यह संभवतः आपकी दृष्टि से अदृश्य हो गई ।"
लव ने कुछ पल मुरली की ओर देखा तथा फिर हिचकिचाते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया।
लव ने सिर झुकाकर शीघ्रता से युवक को धन्यवाद कहा एवं तेज कदमों से वहाँ से जाने लगे। मीरा ने उनका अनुसरण किया । वह युवक अभी भी लव को जाते हुए देख रहा था।
एकाएक उसकी दृष्टि उस स्थान पर पड़ी जहाँ लव खड़ा था । वहाँ लाल रंग की छोटी-सी थैली पड़ी थी। युवक ने उसे उठाया और दृष्टि उठा कर लव को पुकारने हेतु मुँह खोला परंतु तब तक लव जनसमूह के बीच कहीं अदृश्य हो चुका था ।
युवक ने हाथ में पकड़ी हुई थैली की ओर देखा ।
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शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)
Historical Fictionश्वास का मंद स्वर,केश इधर-उधर बिखरे हुए,उसके ओठों पर गहरा लाल रंग छाया हुआ,अर्धचंद्र की चांदनी में उसका मुख उन पारदर्शी नयनों से अलौकिक प्रतीत हो रहा था .... An Indian historical bl (युवालय) written in Hindi. Starts on - 31st March, 2023 {Friday}