अध्याय ७

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राज-भवन के पश्चिमी प्रवेश द्वार को सहस्त्र-दश द्वार का शीर्षक दिया गया था जब शेष योद्धाओं ने सदी के सबसे भयंकर युद्ध में विजय साम्राज्य के नाम कर उस द्वार से प्रवेश किया था ।

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सूर्यास्त के पश्चात आकाश में लालिमा छा गई । गृहों के आँगन दीपों से प्रकाशित हो उठे । नवमी के अवसर पर नगर को भव्य रूप से सुशोभित किया गया था । लाल और स्वर्ण रंग से सुशोभित स्थल आँखों को मनभावन लग रहे थे।

सहस्त्र-दश मार्ग की एक ओर एकत्र प्रजाजनों के मुख दीपों की भाँति उज्ज्वल थे । वहीं मार्ग की दूसरी ओर उच्च श्रेणी के राजकीय व प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे जिनमें सुंदर व सुशील राजकन्याएँ व रानियाँ, प्रतिष्ठित कुल के युवक-युवतियाँ, आर्यवर्त के महान सम्राट, राज-सभा के मंत्रीगण आदि-आदि परिचित-अपरिचित मुख उपस्थित थे ।

सभी के रक्षा सुनिश्चित करने हेतु मार्ग के दोनों ओर राजकीय सैनिक उपस्थित थे।

प्रजा-जनों के शोर तले वीणा आदि वाद्य-यंत्रों का मधुर स्वर दब गया । तभी इन सभी ध्वनियों को चीरता हुआ ढोल का स्पष्ट स्वर सुनाई दिया।

अधम सेतु उत्सवों के दर्शन हेतु नगर का उच्चतम स्थल था । यह नगर के सबसे मनोहर स्थलों में से एक था और इसका कारण था इसका विशेष लाल रंग व अद्वितीय कला ।

सेतु पर उपस्थित कुमार व कन्याएँ मार्ग पर आँखें गड़ाए खड़े थे। एकत्र हुए प्रजा जनों का ध्यान मार्ग पर केंद्रित था और इसका मुख्य कारण स्वयं राजकुमार लव थे। यह जनसमूह मुख्य रूप से कुमार लव के दर्शन हेतु उपस्थित था, वही राज-पुत्र जो उनके व उनके राज्य का भाग्य व भविष्य था । वे सभी उसके दर्शन हेतु आतुर थे ।

ढोल के तीव्र स्वर के मध्य योद्धाओं का आगमन हुआ।
ये योद्धा वास्तव में वही कुमार थे जिनका प्रतियोगिता के लिए चयन किया गया था ।

मार्ग पर दस योद्धा उपस्थित थे जिनमें से सबसे प्रथम अश्व पर उपस्थित युवक सिंह कुल का वंशज, लगध के प्रथम राजकुमार के अतिरिक्त और कोई नहीं था और यह जानने हेतु उसके मुख का तेज ही पर्याप्त था। उसने स्वर्ण सीमाओं वाला एक श्वेत कवच धारण किया था जिसकी दमक में ही रक्त को जमा देने की क्षमता थी । मानो उस कवच का निर्माण ही उसके धारक हेतु हुआ था । उसके लंबे गहरे-भूरे केश अत्यंत ही शिष्टता से उसके सिर के ऊपर एक जूड़े में बंधे हुए थे । उसने कवच के समरूप ही कुंडल धारण किए थे । उसकी स्पष्ट व तीक्ष्ण आँखें, उसकी काली भौंहों के मध्य उसके माथे पर कुल चिन्ह अंकित था । उसने एक धनुष धारण किया था और उसकी कमर पर म्यान में बंद तलवार बँधी थी।

अश्व पर सवार यह युवक और इसका सौंदर्य स्वर्ग लोग के किसी देव से कम न था । यह युवक दिखने में कितना ही कठोर क्यों न था परंतु उन आँखों में एक बालक की स्मृतियाँ थीं ।

सेतु पर उपस्थित एक मोहिनी ने लगध के कुमार का ध्यान स्वयं की ओर आकर्षित करने हेतु उनकी ओर एक पुष्प फेंका जो उनके कन्धे पर जा गिरा । अपेक्षित रूप से, कुमार ने उसकी ओर देखा। युवती तो पहले ही उसे निहार रही थी किंतु जैसे ही कुमार ने उसकी ओर देखा, उनकी दृष्टि मिली, अविलंब, कुमार ने सम्मान वश दृष्टि फेर ली। किंतु वह कन्या, वह अपने स्थान पर स्थिर ही रह गई । ऐसा प्रतीत हो रहा था उसकी देह के कण-कण का रक्त उसके मुख पर ही जा एकत्र हो गया है । उसके मुख का रंग उस पुष्प की पंखुड़ी से भी अधिक लाल हो गया ।

इतना देखते ही स्थल पर उपस्थित अन्य युवतियों ने भी इस कृत्य का अनुकरण किया । अन्य शब्दों में उन्होंने कुमारों पर पुष्प-वर्षा ही आरंभ कर दी ।

चंद क्षणों तक ये चलता रहा जब तक पुष्प-वर्षा के मध्य ही मार्ग पर निरंतर वेग से एक अनियंत्रित अश्व उन्हीं की ओर दौड़ता आ रहा था। घुड़सवार अश्व पर अंकुश पाने के लिए संघर्ष कर रहा था । वह अनियंत्रित अश्व हिनहिनाता हुआ अन्य सभी के निकट से तीव्र गति से निकला । कई बार प्रयास करने के पश्चात घुड़सवार ने एक और बार लगाम खींची और वह अश्व अंततः कुमार आयुध के अश्व से कुछ दूर जाकर एकाएक ठहर गया । सभी उस घुड़सवार की ओर आश्चर्यचकित दृष्टि से देख रहे थे ।

उस अश्व पर सवार वह युवक, यह वही व्यक्ति था जिसकी सभी को अधिकांश प्रतीक्षा थी । यह व्यक्ति इस पूरे अंतराल अनुपस्थित था किंतु योद्धाओं के आगमन के पश्चात किसी ने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया ।

वह घुड़सवार अश्व की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे शांत करने का प्रयास कर रहा था ।

सभी को इस युवक का परिचय जानने की इच्छा थी किंतु कोई भी उसका मुख स्पष्ट रूप से देखने में असक्षम था ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now