अध्याय १२- (भाग २)

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अंधकार में कुछ वृद्धि हुई। निरवता इतनी थी की लव को स्वयं के अतिरिक्त आयुध के श्वास की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती ।

प्रत्येक पग जो वह भूमि पर रखते, उसी के साथ किसी घंटी की-सी मीठी खन-खनाहट कानों पर पड़ती । झंकार जो चित्त को शांत कर देती, मन में उठती हल-चल को दबा देती, लव के विचलित हृदय को अपनी ही मृदुलता में समा लेती।

लव ने आयुध की ओर देखा । यद्यपि उसे स्वयं के पग तले भूमि कुछ अधिक स्पष्ट न दिखती थी, उसे आयुध का मुख अब भी कुछ स्पष्ट दिख रहा था संभवतः कवच से प्रतिबिंबित होती रोशनी के कारण।

'लगध के प्रथम राजकुमार अर्थात पलक्षि के वर।'  कल का स्मरण हो आया जिससे उसके मुख पर स्मित आ गया।' मेरे कहने से पाली को सब मिथ्या लगती है। इतने सुंदर राजकुमार से विवाह कुमारियों का स्वप्न होता है। एक यह है की कुछ समझने को तत्पर नहीं। पगली कहीं की...।'

लव को आश्चर्य तो हुआ था की लगध-कुमार ने प्रमाण हेतु उनसे मुखौटा हटाने को भी न कहा ना ही कोई प्रश्न किया कदाचित राजकीय संबंधों के कारण...किंतु क्या ऐसा करना इनकी सुरक्षा के विरुद्ध नहीं । जो भी हो, राजकुमार अपना उत्तरदायित्व एवं नीतियाँ भालीभाँति जानते हैं ।

अब उसने अपना ध्यान स्वयं के समक्ष इस मार्ग पर केंद्रित किया। पहले ऐसा प्रतीत तो न होता था किंतु अब इस अंधकार में ऊँचाई पर कई छोटे छिद्र दृश्य थे जिनसे चंद्र की एक-एक किरणें यहाँ पड़ती थीं। इनमें से एक भी छिद्र इतना विशाल नहीं की उसमें से किसी मनुष्य का पार जाना संभव हो । कदाचित इस संकट में पड़ना युवराज लव के भाग्य में ही निहित था ।

भूमि पथरीली तो थी ही, अब समतल भी न थी। ऊंचे-नीचे पत्थर जो अत्यंत नुकीले थे, भूमि पर रक्तपिपासक की भाँति बिछे थे । अंधकार में वृद्धि होने लगी थी । लव की बाईं हथेली आयुध की दाहिनी हथेली में थी ।

चलने में कुछ कठिनाई होती जिससे लव कुछ ठहर-सा जाता व अत्यंत सावधानी से आगे बढ़ता किंतु लगध-कुमार की मंद चाल पर भूमि के असमतल होने अथवा अंधकार की वृद्धि होने से जैसे कोई प्रभाव ही न पड़ा वे समान रूप से चलते रहे । किंतु लव को प्रत्येग रखते भय होता ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now