अध्याय १५

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युवराज ने प्रश्न किया,"आपका निवास कहाँ है?" जिसपर ध्रुव ने कृतज्ञ भाव से कहा,"हमें यहाँ से मुक्त करने हेतु कोटि-कोटि धन्यवाद, युवराज। मैं इस सहायता हेतु आजीवन आभारी रहूँगा।"बालक मध्य ही धीरे से बोला,"मैं भी" ध्रुव बोलता रहा,"किंतु अब 'हम' युवराज पर अधिक भार न बनना चाहेंगे।मेरे कुटुम्ब के सदस्य इसी ग्राम में निवास करते हैं। हम दोनों यहाँ सुरक्षित रहेंगे। इस घटना का शेष कुछ निरीक्षण समिति का उत्तरदायित्व है, वे ही यह कार्य संभालेंगे। कृप्या निश्चिंत रहें।"

ध्रुव ने बालक को भी संकेत से आभार व्यक्त करने कहा जिसपर बालक ने कहा,"धन्यवाद,...युवराज"। युवराज को ऐसा प्रतीत हुआ की बालक ने जैसे केवल ध्रुव के आदेश का पालन ही न किया था अपितु स्वयं के भाव भी प्रकट कर रहा था किंतु अब यह समझना युवराज का कार्य था की बालक मिष्ठान हेतु आभार व्यक्त कर रहा था अथवा सहायता हेतु।

युवराज ने उसके आकार तक झुककर कहा,"किंतु हम तो मित्र हैं न? मित्रों में धन्यवाद कैसा?" बालक ने सहमति में सिर हिलाया,"तो मित्र, क्या आप पुनः मुझसे भेंट करेंगे ?"

लव मुखौटे के पीछे मुस्कुराया,"अवश्य करेंगे!"
बालक बोला,"तब मैं भी तुम्हें अपने कई प्रिय मिष्ठान दूँगा !"

"अवश्य, किंतु तब तक यह वस्तु मेरे लिए सँभाल कर रखो, हाँ?", युवराज ने एक कटार बालक की छोटी-सी हथेली में रख दी ।बालक ने सहमति में सिर हिलाया। लव को संशय हुआ की ध्रुव विरोध करेंगे किंतु ध्रुव पहले ही इसका अर्थ समझते थे। वे ऐसे ही राज्य के इतने उच्च अधिकारी न थे।

"उचित है ! तो फिर हम भी आप से विदा लेना चाहेंगे", युवराज बोले।

ध्रुव ने शीश झुकाकर लव की दिशा में हाथ जोड़े तत्पश्चात कुमार आयुध की । वही भाव-विहीन किंतु मनोहर मुख । कुमार आयुध ने ध्रुव की ओर बिन देखे ही हाथ जोड़े, उनके नेत्र तीक्ष्ण किंतु दृष्टि रिक्त थी ।

ध्रुव दोनों कुमारों से आयु में ज्येष्ठ था; कुमारों के सरल एवं उदार स्वभाव को देखते हुए उसने मन की बात जिह्वा पर लाने में अधिक संकोच न किया। उसने जाते समय लव की ओर मुस्कुराकर कहा,"आप दोनों की मित्रता देखकर ज्ञात हुआ की मेरे मित्रों को आपके बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।"

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now