अध्याय १५ (भाग-२)

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जब वहाँ युवराज का आगमन हुआ तब तक अन्य कुमार झरने से प्रस्थान कर चुके थे । विलंब करना युवराज का ही विचार था । यही निरवता युवराज को सर्वाधिक प्रिय थी। दृष्टि में केवल प्रकृति के मनोहर सौंदर्य की प्रति थी । लव जल में पग लटका कर ताल के तट पर बैठ गया । एक परिचारक आगे बढ़ा किंतु युवराज ने हाथ से संकेत कर उसे लौटने का आदेश दे दिया । परिचारक सिर झुकाकर उल्टे पग लौट गया ।

लव ने केश पर से स्वर्ण बंधन हटाया, मुक्त होते ही इन रेशमी लटाओं ने जल-धारा की भाँति उसके शीर्ष पर से गिरते हुए उसके मुख को एक सुंदर आकृति प्रदान की । वह ऊपर ऊंचाई की ओर देखने लगा जहाँ आकाश के स्थान पर गुफा के सदृश चट्टानों से निर्मित एक कृत्रिम रचना थी ।

लव के मुँह से उच्छवास निकला। यद्यपि उसे यह निरवता प्रिय थी, वह यह भी जानता था कि वह सदैव इसका भोग नहीं कर पाएगा न ही भाग्य उसे इसकी अनुमति प्रदान करेगा अतः वह इस चित्र को नेत्रों में समा लेना चाहता है। इसका कारण उसके स्वयं के निर्णय अथवा उसके जीवन से संबंधित किसी अन्य के निर्णय हो सकते हैं । किंतु यह तय है की उसे जिस विपत्ति का भय है वह टाली नहीं जा सकती ।

उसने स्वयं एक रहस्य छिपाया है जो उसके स्वयं के विचारों से अधिक कुछ नहीं किंतु वह यह विचार किसी से प्रकट नहीं कर सकता क्योंकि यह 'रहस्य' है। रहस्य भी कैसा जो इतना भी महत्वपूर्ण नहीं कि उसे रहस्य भी कहा जा सके, उसका तो यही विचार है। किंतु यदि यह रहस्य नहीं तो इस दिवस तक संश जैसे विश्वासपात्र व्यक्ति के समक्ष भी अपनी इच्छा प्रकट करने का साहस उसे क्यों न हुआ। लव के विचारों में यह बात इससे कहीं अधिक साधारण थी जितनी किसी अन्य को ज्ञात होने पर विस्मयकारी व आपत्तिजनक लगती।

उसने विचार ही नहीं निर्णय किया था कि वह राज-पाठ नहीं संभालना चाहता । वह युवराज था किंतु वह यह उपाधि, यह साम्राज्य त्यागकर साधारण जनों की भांति जीवन व्यतीत करना चाहता है । इसी कारण से वह स्वयं को एक बड़ा कायर समझता है जो अपने महान पूर्वजों द्वारा स्थापित इस राज्य का इतनी सरलता से परित्याग करना चाहता है जिसकी रक्षा हेतु रक्त को जल के मूल्य बहाया गया । कुल की मान-परंपरा का उल्लंघन नहीं करना चाहता । जिस दिवस उसने इनमें से स्वयं को चुना उसे पूर्ण विश्वास है वह निश्चित है जिसका उसे भय है, माता-पिताश्री की निराशा । उन सभी की निराशा जिसे वह इस जीवन में सहन नहीं कर सकता । वह संकट निश्चित है।

संकट तो निश्चित है किंतु युवराज के विचार अनुसार हो यह तो निश्चित नहीं । विपत्ति समय से पूर्व अथवा समय के पश्चात न आएगी सो इस विषय में मनुष्य की चिंता व्यर्थ है । उसका कर्तव्य इन लहरों को पार करना है सो उसे करना आवश्यक है तथा वह करेगा भी । इसमें दोष मनुष्य का अथवा उसके द्वारा दोषी माने जाने वाले भाग्य का नहीं होता । दोष किसी का नहीं । दोष कदाचित उन परिस्थितियों का होता है ।

"दोष कदाचित इस जीवन का ही होता है।",लव आहत होकर मुस्कुराया । उसने जल में एक डुबकी लगाने का विचार किया ही कि एकाएक जल में कुछ हलचल हुई व वहाँ किसी का शीश दिखा तत्पश्चात मुख, भुजा, वक्ष आदि । नहीं, वहाँ वरुण देव न प्रकट हुए थे, लव इतना भी बड़ा भक्त न था । वहाँ तो राजकुमार आयुध थे । यह कहाँ से प्रकट हुए? यहाँ इतने समय से बैठा-बैठा लव जिसे (जल में पड़ी) शिला समझ रहा था, वह राजकुमार का शीश निकला। वे कदाचित वहाँ ध्यान कर रहे थे ।

जल में वक्ष तक डूबे आयुध ने जल से सिक्त केश ललाट पर से पीछे समेटे तथा उनकी दृष्टि सामने ताल के तट पर बैठे युवराज पर पड़ी । राजकुमार को देखते ही लव आश्चर्य में पिछड़ गया व अनायास ही मुख पर हथेली रख ली (इस समय लव ने मुखौटा धारण नहीं किया था) किंतु भान होते ही अगले ही क्षण हटा ली । विस्मय  से नैन फटे हुए थे ।

कुछ आश्चर्यचकित तो आयुध भी थे । इस प्रकार कि उनकी दृष्टि तट पर बैठे युवक पर तथा केश समेटते हाथ शीर्ष पर हो स्थिर थे । उनकी देह पर श्वेत वस्त्र लिपटा था तथा उनकी त्वचा पर शुद्ध जल की प्रत्येक बूँद दर्पण (हीरे) की भाँति चमक रही थी। यह राजकुमार उस राजकुमार से बहुत भिन्न लग रहे थे जिन्होंने लव की सहायता की थी । वे तट कि ओर बढ़े। प्रत्येक पग जो वे आगे बढ़ते, उनकी आकृति बढ़ती जाती थी। वे कुछ कहे बिन ही लव के निकट से जाने लगे तो युवराज, जो अब इतना प्रसन्नचित्त होकर  बैठे थे मानो संसार की कोई चिंता उन्हें डिगा नहीं सकती, ने उन्हें पुकारा,"सुप्रभात, राजकुमार"। वह मुस्कुराया।

आयुध ने परिचारक से वस्त्र लेकर स्वयं पर डाला । लव को सुनते ही भूमि की ओर देखते हुए हाथ जोड़कर बोले,"सुप्रभात, युवराज" व चले गए।


टिप्पणी:
निरवता - calmness,peace
ताल - pond
वक्ष - chest

द्वितीय कथा शिलालेखम् भी अवश्य पढ़ें । विचार साझा करें ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now