अनछुआ एहसास

84 10 3
                                    

बन कर हवा मैं तेरे पहलू को छु लूँ
की बिखर जाऊँ तेरे आस पास यूँ
मेरे होने का एहसास तू पा ले
के बन कर घटा तेरे आँगन में बरसुं
उन बूँदों में तू मुझे महसूस करले
या नदी बन कर  बहूं मैं
तू साहिल बन मेरे साथ चले
या धड़कन बन तेरे दिल में धड़कुं
तू सांस बन कर मुझ को जी ले
या बन जाऊँ कलम मैं
जो मेरे जज़्बातों को कागज़
पर लिख दे .................
तुही बता क्या करूँ जो
मेरे दिल की सदा तुझ तक पहुंचे

मनीषा

हमसाया जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें