दो लफ्ज़

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लफ्ज अच्छे लगे तो वाह वाह कीजियेगा
जज्बात समझ आए तो आह लीजियेगा।
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तुम जोड़ते हो मेरे इश्क को किसी के नाम से सही
पर अफसोस मेरी मोहब्बत की इंतिहा को कोई समझा ही नहीं।
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उनकी दिल्लगी से जो हम दिल लगा बैठे, उफ कयामत ही आई बाद उसके।
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हसीन जिन्दगी भी होती, अगर उस माशूक की तरह होती, जिसे सिर्फ ख्वाबों में ही देखा हो।
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