The Trap

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मैं देहरादून के लिए रवाना हुआ, उसका धनुष जो फोल्डेबल था मुझे उसकी याद दिलाता रहेगा।

रात को 9 बजे तक मैं अपने रूम पहुँचा।

पास वाले अंकल बाहर ही खड़े थे, जैसे उन्हें पता हो कि मैं आने वाला हुँ।

मैंने उनका अभिवादन किया, उन्होंने मुझे पूछा कि इतने दिन कहाँ थे, मैने बताया कि मुझे इंटर्नशिप मिल गयी थी, उन्होंने ये भी बताया था कि एक आदमी आया था, मेरे बारे में पूछ रहा था, फिर चला गया।

कौन हो सकता है वह,

ध्रुव ...शायद मुझे ढूँढता हुआ पहुंच गया हो।

मैं अंदर गया तो सब बिखरा हुआ मिला, किसने किया होगा ये सब, ध्रुव ...नही, विवान।

हो सकता है वह अब भी मेरा पीछा कर रहा हो, पर वह ढूंढ क्या रहा था।

मुझे ध्रुव के पास जाना चाहिए

मैंने जल्दी से अपना सामान समेटा और फिर से घर की ट्रेन पकड़ी, पूरा दिन में सफर में रहा, रास्तो में मॉनसून ने जादू बिखेरा वह देखने लायक था।

अगले दिन शाम को, मैं घर पहुँचा।

वँहा से सीधा मैं ध्रुव के घर गया,

ध्रुव घर पर ही था, जैसे ही उसने देखा कि मैं हु,

उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे जाने को बोला, मेने उसे समझाने की कोशिश की पर वह मान ही नहीं रहा था।

"तुम भागे क्यूँ"-उसने गुस्से में कहा-"और अगर भागे नहीं तो फ़ोन क्यूँ बन्द था तुम्हारा"।

"ध्रुव तुम समझने की कोशिश करो"-मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा-"मेरा फ़ोन खराब हो गया था"

"नहीं मुझे पागल मत बनाओ, तुम बस चले जाओ यहाँ से"

"ध्रुव, मुझे तुम्हारी ज़रूरत हैं"

"ज़रूरत?" उसने कश के मेरे चेहरे पर मुक्का मारा "उस वक़्त कहाँ थे जब मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी"

"जब ... जब मेरे पास तुम्हारे सिवा कोई नहीं बचा था" वह रो रहा था "कहाँ थे तुम जब मैं अकेला आँटी को संभाल रहा था, झूठ बोलना पड़ा मुझे उनसे की मैं तुझसे मिला था और तू पढ़ाई कर रहा है"

"तुझे पता है उस माँ की हालत जो हर रोज़ तुझे फोन लगाती और ये आशा करती की शायद कभी तेरी आवाज सुने, दुआ करती की उसका बेटा सलामत रहे"-ध्रुव की आवाज में वह नमी मैं महसूस कर रहा था।

"क्यों गया था तू?"-ध्रुव मेरे गले से आ लगा-"बता क्यूँ"

"ध्रुव मैं अवनि के लिए गया था, तुजे उस शर्मिंदगी से बचाने गया था"-और मैने उसे सब कुछ बता दिया, जो भी अब तक हुआ, मेरा देहरादून जाना, वह लॉकेट, धारा से मिलना, विवान का हमला।

"अभय! मुझे पता है तुम्हारा वैम्पायर लव, पर फैंटसी में जीना ..., तुम खुद को बचाने के लिए एक कहानी सुना रहे हो"-ध्रुव मानने को तैयार न था।

"रुको मेरे पास... यह देखो वह लॉकेट"-अब तो यकीन हुआ।

"अब क्या करना होगा?" ध्रुव ने पूछा

"अवनि के पास चलते है"-मैंने ध्रुव को बताया–"वही हम आगे का प्लान बनाएंगे"

हम दोनों अवनि के घर पहुँचे।

उसके घर पर ताला लगा था।

पास में पूछने पर पता चला कि वह तो आज सुबह ही कहीं और चले गए, अवनि के इलाज के लिए, पर कहाँ ये पता नही।

हम अवनि के हॉस्पिटल पहुँचे, वहाँ पता चला कि उसे देहरादून रेफर किया गया था।

"ओह! ये एक ट्रैप है"-मुझे इसमे विवान का हाथ लग रहा था "वो चाहते थे कि अवनि वहाँ आए"।

"कैसा ट्रैप अभय?"

"मैं बाद में समझाता हु तू बस चल, हम देहरादून जाएंगे, अभी!"

"अरे हम आँटी को फ़ोन कर लेते है ना अभी"-ध्रुव ने कहा "वैसे भी तू अभी तो आया है कब से सफर ही कर रहा है"

"ध्रुव यार तू समझ नहीं रहा, कुछ भी हो सकता है वहाँ, अवनि की ज़िंदगी का सवाल है, तू प्लीज़ चल"

हम दोनों ने फ्लाइट के बारे में पता किया और दुर्भाग्य से देहरादून जाने वाली सभी फ्लाइट्स घने कोहरे के कारण रद्द कर दी गयी।

हम रेलवे स्टेशन पहुँचे तो पता चला कि अगली ट्रेन तो 4 घण्टे बाद है।

"अब क्या करे यार अभय!"

"कोई चाहता था कि मैं यहाँ आ जाऊ जब अवनि वहाँ हो, ये एक प्लान था मेरा रूम बिखरा होना, मेरा ये सोचना की तुम आए होंगे, फिर यहाँ घर आना और इसी वक्त अवनि को वहाँ ले जाना"-मै बहुत टेन्सन में था-"तुम्हारे अंकल की कार, वह अब भी चलती है ना ध्रुव"

"हाँ, वही चलते है"

उसके अंकल की कार ले कर हमने देहरादून रवानगी की।

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