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'हा, हा...लिकमा बट्ट, लिक माइ बट्ट, लिक माइ बैकसाइड... बटाटा वरा, यू आर लकी टू हैव बीन स्पेयर्ड विद ओनली वन स्लैप' हैरी की हँसी रुक नहीं रही थी।
'इज़ दैट नॉट हर नेम?' कबीर अभी भी अपना गाल सहला रहा था।
'हर नेम इज़ हिकमा, नॉट लिकमा' हैरी की हँसी अब भी नहीं रुकी थी।
'वाय डिड यू डू दिस टू मी?' कबीर को कूल पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
'कूल-डाउन बडी' कूल के होंठों पर तैर रही बेशर्म मुस्कान कबीर को बहुत ही भद्दी लगी।
'कूल-डाउन? क्यों?' उस वक्त कबीर को इतना अपमान महसूस हो रहा था कि जैसे उसने सिर्फ़ एक लड़की से नहीं बल्कि पूरे आज़ाद कश्मीर से थप्पड़ खाया हो। हिंदुस्तान ने पाकिस्तान से थप्पड़ खाया हो।
'सी बडी, इसी तरह प्यार की शुरुआत होती है। जब उसे पता चलेगा कि उसने तुझे तेरी ग़लती के बिना चाँटा मारा है तो उसे तुझसे सिम्पथी होगी। फिर वो तुझसे माफ़ी मांगेगी, फिर तू उसे ऐटिटूड दिखाना, फिर वो तुझे मनाएगी...'
प्यार? हिकमा जैसी खूबसूरत लड़की को कबीर से? कश्मीरी सेब को गुजराती फाफड़े से? कबीर अपनी फैंटसी की दुनिया में खो गया। कूल को तो उसने कब का माफ़ कर दिया। वह बस इस सोच में खो गया कि जब हिकमा उससे माफ़ी मांगेगी तो उसका जवाब क्या होगा। क्या वह उसे कोई ऐटिटूड दिखा पाएगा? कहीं हिकमा उसके ऐटिटूड से नाराज़ न हो जाए। एक मौका मिलेगा पास आने का, वो भी न चला जाए। कबीर ने सोच लिया कि वह उसे झट से माफ़ कर देगा। शी वाज़ सच ए स्वीट गर्ल! कबीर अपने गाल पर पड़ा थप्पड़ भूल गया था। उसका दर्द भी और उसका अपमान भी। कबीर यह सोचना भी भूल गया था कि हिकमा को यह कौन बताएगा कि ग़लती उसकी नहीं थी।
अगले कुछ दिन कबीर प्ले टाइम में हिकमा से नज़रें मिलाने से बचता रहा। मगर छुप-छुप कर कभी इस तो कभी उस आँख के कोने से उसे देख भी लेता। इस बात की बेसब्री से उम्मीद थी कि हिकमा को यह अहसास हो कि ग़लती उसकी नहीं थी, मगर वह अहसास किस तरह हो यह पता नहीं था। एक बार सोचा कि कूल की शिकायत की जाए, मगर उससे बात का निकल कर दूर तलक चले जाने का डर था। अच्छी बात यह थी कि हिकमा ने उसकी शिकायत किसी से नहीं की थी। इस बात पर कबीर को वह और भी अच्छी लगने लगी थी। अब बस किसी तरह उसकी ग़लतफ़हमी दूर कर नज़दीकियाँ बढ़ानी थीं।
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डार्क नाइट
Romanceकबीर का किशोर मन, प्रेम, रोमांस और सेक्स की फैंटेसियों से लबरे़ज है। कबीर की इन्हीं फैंटेसियों का कारवाँ वड़ोदरा की कस्बाई कल्पनाओं से निकलकर लंदन के महानगरीय ख़्वाबों तक पहुँचता है। लंदन के उन्मुक्त माहौल में, कबीर की कल्पनाओं को हर वो ख़ुराक हासिल है...